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मध्यकाल में अग्रवाल जाति स्थान अद्वितीय है । अग्रवाल जाति को यह सौभाग्य प्राप्त है, कि उसमें भारतेन्दु जैसे प्रतिभाशाली कवि और लेखक उत्पन्न हुए। यदि लाला अमीचन्द से भारत का कुछ अपकार हुवा, तो उसकी. क्षतिपूर्ति उनके वंशज भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने पूर्णतया कर दी है। इस कुल का सम्पूर्ण कलंक भारतेन्दु जी ने धो दिया है।
( श्रीयुत् बजरत्नदास कृत भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के आधार पर)
चौधरी चोखराज मेरठ में वर्तमान समय में कानूनगो नाम का एक अग्रवाल परिवार है, जो अत्यन्त प्रतिष्ठित और समृद्ध है। लगभग ३०० वर्ष से इस परिवार का सिलसिले बार इतिहास उपलब्ध होता है । इस काल के पूर्व पुरुष लाला चोखराज जी चौधरी थे । इनकी मुगल बादशाह औरङ्गजेब के दरबार में बड़ी प्रतिष्ठा थी । इनकी प्रतिभा और योग्यता से प्रसन्न होकर औरङ्गजेब ने इन्हें कानूनगो का खिताब दिया था, और इसके लिये सन् १६५८ में एक शाही फरमान इनायत किया था। चौधरी चोखराज के एक पूर्वज को भी बादशाह जहांगीर द्वारा जब्तुल अनामिल का खिताब प्राप्त हुआ था। औरङ्गजेब के पश्चात भी इस परिवार का मुगल दरबार से सम्बन्ध बना रहा। चौधरी लेखराज के कई पीढ़ियों बाद लाला दलपत राय जी हुए। इनकी बादशाह शाह आलम के दरबार में बड़ी प्रतिष्ठा थी। इनकी सेवाओं से प्रसन्न होकर शाह आलम ने सन् १७७६ में एक शाही फरमान जारी किया, जिसमें कि अोरङ्गजेब के समय
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