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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास
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इतिहास में लाला अमीचन्द के चरित्र को बड़ा कलुषित प्रगट किया जाता है । यह ठीक भी है, पर यदि उस काल के प्रमुख व्यक्तियों के जीवन पर दृष्टि डाली जाय, तो पड़यन्त्र, कपट आदि बिलकुल साधारण बातें प्रतीत होती हैं। लार्ड क्लाइब, सिराजुद्दौला आदि इस काल के सभी प्रमुख मनुष्य इस प्रकार की धोखेबाजी और षड्यन्त्रों को बिल्कुल सामान्य बात समझते थे, और स्वयं इनका प्रयोग करते थे। अमीचन्द इसी श्रेणि के मनुष्य थे । समय को देखते हुवे उन्हें एक अत्यन्त प्रभावशाली,कुशल और चाणाक्ष नीतिज्ञ पुरुष ही कहना होगा। जिस समय में वे हुवे, अपनी शक्तियों का उपयोग वे इसी ढंग से कर सके।
लाला अमीचन्द की मृत्यु सन् १७५८ में हुई। उनके पुत्र फतेहचन्द थे । उनका विवाह काशी के एक अत्यन्त प्रसिद्ध नगर सेठ गोकुलचन्द जी की कन्या से हुवा था । सेठ गोकुलचन्द के पूर्वज ने अन्य नगर सेठों तथा सरदारों का साथ देकर काशी के वर्तमान राजवंश को यह राज्य दिलाने में बहुत उद्योग किया था, इसी कारण वे इस राज्य के महाजन नियुक्त हुवे थे और उन्हें प्रतिष्ठापूर्ण नौ-पति की पदवी प्रदान की गई थी। लाला अमीचन्द के देहान्त के पश्चात् उदासीन होकर श्री फतेहचन्द अपने ससुराल में बनारस आ गये । इनके ससुर की दूसरी सन्तान नहीं थी, अत: श्री फतेहचन्द जी ही उनके उत्तराधिकारी हुवे । इस समय से लाला अमीचन्द के वंशज काशी में ही रहने लगे ।
आगे चलकर इसी कुल में भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का जन्म हुवा। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का यहां परिचय देने की कोई आवश्यकता नहीं । वे वर्तमान हिन्दी साहित्य के जन्मदाता हैं। हिन्दी संसार में उनका
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