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मध्यकाल में अग्रवाल जाति ऐतिहासिक पुस्तकों का प्रयोग इस विवरण के लिये किया गया है। इन पुस्तकों का उल्लेख साथ साथ ही कर दिया गया है।
यद्यपि यह मध्यकाल के अग्रवालों का क्रमवद्ध इतिहास नहीं है, तथापि इसकी उपयोगिता में सन्देह नहीं किया जा सकता।
पटियाला का दीवान नन्नूमल सन् १७६५ में महाराज अमरसिंह पटियाला की राजगद्दी पर बैठे। उनका दीवान लाला नन्नूमल था । राजा अमरसिंह के युद्धों में दीवान नन्नूमल ने बड़ा महत्वपूर्ण भाग लिया । राजा अमर सिंह अपने समीपवर्ती मुगल दुर्गों को जीत कर उन पर अपना अधिकार स्थापित कर रहा था। फतहाबाद और सिरसा पर वह अपना अधिकार जमा चुका था। फिर उसने रानिया पर हमला किया। इसी बीच में दिल्ली के मुगल सम्राट की आज्ञा से हांसी के सूबेदार रहीमदाद खां ने जींद पर हमला किया। इस समाचार को सुनकर अमरसिंह ने जींद की रक्षार्थ दीवान नन्नूमल को भेजा । दीवान न नूमल बड़ा कुशल सेनापति था। उसने कैथल और जींद की सेनाओं के साथ बड़ी सफलता से अपना सम्बन्ध स्थापित किया, और तीनों सेनाओं ( जींद, कैथल और पटियाला ) ने मिलकर वीरता के साथ मुगल सेनापति का मुकाबला किया । मुगल सेना परास्त हुई और रहीमदाद खां वापिस लौट गया।
इसके बाद दीवान नन्नूमल ने हांसी और हिसार के ऊपर हमला किया । इन दोनों जिलों की मुगल सेनाओं को परास्त कर दावान
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