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भारतीय इतिहास के वैश्य राजा
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होता । यह ठीक हैं, कि कारस्कर पंजाब की तरफ के रहने वाले थे पर पंजाब में जाटों के अतिरिक्त अन्य भी बहुत सी जातियां बसती थीं । कारस्कर जाट थे, यह सिद्ध करने में जायसवाल जी को सफलता नहीं मिली । वैश्य आग्रेय लोग भी पंजाब के निवासी थे। कारस्कर शब्द का प्रयोग कौमुदी महोत्सव ने पश्चिम की तरफ के लोगों के लिये घृणार्थ में किया है । इस दृष्टि से वैश्य आग्रेयों के लिये भी इस शब्द का प्रयोग हो सकता है
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जाट लोग अपने को क्षत्रिय कहते हैं । वे नीच जाति के हैं, और इसीलिये गुप्त सम्राट् अपने वंश को बताने में संकोच करते थे, इसे जाट लोग कभी स्वीकार न करेंगे ।
मंजुश्रीमूलकल्प में 'मथुराजात : ' का अर्थ मथुरा का जाट समझना भी कुछ उचित नहीं है, क्योंकि अगला ही शब्द ' वणिक्' है । यदि लेखक का मथुराजातः से अभिप्राय मथुरा का जाट होता, तो वह अगला ही शब्द ' वणिक' न लिखता । मथुराजातः का अर्थ मथुरा में पैदा हुवा ही है । मंजुश्रीमूलकल्प के लेखक को, जैसा कि जायसवाल जी ने लिखा है, गुप्त शब्द से भ्रम नहीं हो गया था । इसी शब्द के कारण भूमवश उसने चन्द्रगुप्त, समुद्रगुप्त आदि को वैश्य नहीं लिख दिया है । हम समझते हैं, उसने सच्ची ऐतहासिक अनुश्रुति के आधार पर ही यह बात लिखी है
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