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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास
एको यागो हि शेषोऽस्ति सो हि ो विधीयताम् पुनर्नहि विधातव्यमित्येतद्वचनं मम ॥६० गन्तव्यं ननु यागस्य समयो ह्यतिवर्तते । पुरोहितजनास्तावदेवमेव वदन्ति वै ॥९१ सुधीभृत्वा भवानेवं कथं मां वै प्रभाषते । अग्रसेन उवाचेदं तातवाक्यं विचार्यताम् ॥६२ यावत् पापकर्मभ्यो मनुष्यस्तु पृथग्भवेत् । तावदेव महच्छ्रेय एषा हि सम्मतिर्मम ॥६३ पशूनां हिंसनं पापं हि त्वयापि प्रतिरुध्यताम् । इयं प्रतिज्ञा कर्तव्या मद्वचस्तु हि मन्यताम् ॥६४ अस्मद्वंशे तु कश्चित् वै हिंसनं न समाचरेत् ।
अब केवल एक यज्ञ बाकी रह गया है, उसे पूर्ण कर लेना चाहिये । फिर कभी नहीं करना चाहिये, मेरी भी यही सम्मति है। अब आपको चलना चाहिये, क्योंकि यज्ञ का समय बीत रहा है। पुरोहित लोग सब यही बात कहते हैं । ९०-९१
इस पर अग्रसेन ने कहा-आप समझदार होकर भी मुझे ऐसी बात कहते हो। हे वत्स ! इस बात पर विचार करो, कि मनुष्य पाप कर्म से जितना भी बचे, उतना ही अधिक अच्छा है । मेरी तो यही सम्मति है। पशुओं का वध करना पाप है, वह तुम्हें भी रुकवा देना
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