________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१९५
उरु चरितम् पश्चात्तापं प्रकुर्वन्तः ............ ॥५० पाणिवद्धाः प्रभाषन्ते पापो नः क्षम्यतां मुने दयालो.... मन्युयोग्याः वयं न हि ॥५१ वचनं दीनमाकार्य तदा वै मुनिरब्रवीत् ॥५२ मम शापस्य यत्....कदापि न भविष्यति अवश्यमेव क्तव्यं भवद्भिः नात्र संशयः ॥५३ एकरवरेगा वै प्रोचुः रंगस्य भ्रातरस्तदा कथं . शापेन.... उद्धारो भविष्यति ॥५४ वदरिकाश्रमं गत्वा पूर्ण वर्षसहस्त्रकम तपस्यां चरथ यूयं मनः कृत्वा.... ॥५५
अपनी ऐसी दशा देख कर उन का मद चूर्ण हो गया, और पश्चात्ताप करते हुवे हाथ जोड़ कर यह बोले- हे मुनि ! हमारे पाप को क्षमा करो हे दयालो ! हम लोग क्रोध के लायक नहीं हैं । ५०-५१
उनके दीन वचनों को सुन कर तब मुनि बोले- मेरा शाप अब (अन्यथा ) कदापि न होगा । उसे तुम्हें भोगना ही पड़ेगा, इसमें सन्देह नहीं। ५२-५३
इस पर रंग के भाई सब एक स्वर से कहने लगे- हमारा शाप से उद्धार किस प्रकार होगा। ५४
(मुनि ने कहा ) तुम बदरिकाश्रम जाओ, और वहां जाकर पूरे हज़ार वर्ष तक मन को ( वश में ) करके तपस्या करो । ५५
For Private and Personal Use Only