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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास
राजवंशं निन्दयन्त्वं भयं कस्मान्न मन्यसे इत्थं क्रोधेन पूर्णानि वांसि मुनिरशृणात् ||४४ अथाब्रवीत् मुनिः...... एते धनमदोद्धता: स्वीयं सुख प्रमन्यन्ते हयनाचारे........ ॥ ४५ अनर्थ वै करिष्यन्ति योग्योपायेन वै विना ॥४६ कमण्डलुं समादाय मन्युपूर्णो मुनिस्तदा भ्रातृन् आलोक्य शापं वै प्राददत मुनि सत्तमः ॥४७ अस्मिन्नेव क्षणे सर्वे भवेयुः शूद्रका इति ॥४८ यथा मुनिना चाशापि अभवन् शूद्रसंजकाः यज्ञोपवीतं तेषांतु स्वयमेवापतत् भुवि ॥४६ इत्थमात्मानमद्रातुः मदस्तेषां हि खण्डितम्
राजवंश की निन्दा करते हुवे तू भय क्यों नहीं अनुभव करता । ४४
मुनि ने क्रोध से भरे हुवे ये वचन सुने और कहा- ये सब धन के मद से उद्धत हो गये हैं । अपने ही सुख को मानते हैं, और अत्याचार में ( व्याप्त हैं )। अगर इनका योग्य उपाय न किया जायगा, तो ये बहुत अनर्थ करेंगे । ४४-४६
क्रोध से भरे हुवे मुनि ने तब कमण्डल लेकर उन भाइयों की तरफ देखकर यह शाप दिया-तुम सब इसी क्षण शूद्र बन जाओगे । ४७-४८
. जैसा मुनि ने शाप दिया, वैसा ही हुवा । वे सब शूद्र कहाने लगे। उनका यज्ञोपवीत स्वयमेव पृथ्वी पर गिर पड़ा । ४९
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