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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास
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सहस्त्राब्दं तपश्चर्या कृत्वा रंगस्य भ्रातरः पुनः द्विजत्वं वै प्रापुः शिष्य त्वं शृणु मद्वचः ॥५६
अनादरं प्रकुर्वन्ति ब्राह्मणानान्तु य नराः इयमेव दशा तेषां शिष्य सत्यं हि मन्यताम् ॥५७ रंगस्य वै पुत्रो विशोकस्तस्य वै मधुः मधोर्महीधरो जातो यो महरिशवभक्तिमान् ॥६० येन बहु वरं लब्धं महादेवं प्रतोप्य हि यस्य वै सप्तपुत्रास्तु धनवन्तः प्रवीणकाः ॥६१ तेषु वै वल्लभो नाम पितुर्दैव्यस्य स प्रभुः अग्रसेनः शूरसेनः बल्लभस्य सुतद्वयम् ॥६२
रंग के भाई हज़ार वर्ष तक तपस्या करके फिर द्विजत्व को प्राप्त हुवे । हे शिष्य ! मेरे इस वचन को सुनो । जो लोग ब्राह्मणों का अनादर करते हैं, उनकी यही दशा होती है। मेरी इस बात को सत्य मानो । ५६-५७
रंग का पुत्र विशोक हुवा । उसका लड़का मधु था । मधु से महीधर उत्पन्न हुवा ! वह शिव का बड़ा भारी उपासक था । उसने महादेव को प्रसन्न करके बहुभ से वर प्राप्त किये। इसके सात पुत्र हुवे, जो सब बड़े धनवान तथा प्रवीण थे । ६०-६१.
उनमें वल्लभ नाम का लड़का पिता की सम्पत्ति का मालिक बना । वल्लभ के दो लड़के हुवे-अग्रसेन और शूरसेन । ६२
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