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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास
स्वदेशं वै परित्यज्य मथुरा कथमागतः ॥३॥ कथं च सचिवो जातः कार्य वै विदधौ कथम् । एतत् सर्वे महाराज, वर्यतां कृपया मम ॥४॥ शिष्यस्येत्थं रुचिं दृष्ट्वा उवाच हरिहरस्तदा वैश्यवंशे समुत्पन्नः व्यापारे कुशलत्तथा ॥५॥ शास्त्रज्ञो यज्ञकर्ता च गुरुभक्तश्च पुत्रक शूरसेनो महात्मा वै चस्त्रिं तस्य शृण्वताम् ॥६॥ पुरोहितोऽहं तस्यैव वंशस्य निश्चयं ननु । पूर्वमेव ममोकण्ठा चरित्रं श्रावयाम्यहम् ॥७॥ वत्स प्रश्नरतव ह्ययं मम मानस हर्षदः
श्राया ? वह किस तरह सचिव बन गया और उसने राज्य कार्य का संचालन किस प्रकार किया ? हे महाराज ! यह सब बातें कृपा करके मुझे बताइये । १-४
अपने शिष्य की इस प्रकार की रुचि देख कर हरिहर ने कहा
शूरसेन वैश्य वंश में उत्पन्न हुवा था, व्यापार में कुशल था, शास्त्रों का ज्ञाता था, यज्ञ करने वाला था, गुरु का भक्त था। हे पुत्रक ! उस शूरसेन महात्मा के चरित्र का श्रवण करो। मैं निश्चय से उसी वंश का पुरोहित हूँ | मेरी तो पहले से ही इसके लिये उत्कण्ठा है । अतः मैं उसके चरित्र को सुनाता हूँ। हे वत्स ! तुम्हारा यह प्रश्न मेरे मन में प्रसन्नता को उत्पन्न करने वाला है। तुम्हारे लिये भी यह
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