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दूसरा परिशिष्ट
उरु चरितम् विद्याधरो हस्त बद्धः स्वगुरुं पृष्टवान् तदा उरोपस्य चारित्र्यं वंशवृत्तं तथोद्भवम् ॥१॥ श्रुतं मया महाराज भवतां कृपया ननु तस्य सचिवस्येदानीं शूरसेनस्य वै पुनः ॥२॥ वृत्तान्तं श्रोतुमिच्छामि कृपया परयातव (१)
हाथ जोड़ कर विद्याधर ने तब अपने गुरु से पूछा-हे महाराज ! राजा उरु का चरित्र, वंश वृत्त तथा उद्भव मैंने आपकी कृपा से सुन लिया। अब उसके सचिव शूरसेन का वृतान्त मैं सुनना चाहता हूं। हे दूसरों पर दया करने वाले ! वह अपना देश छोड़ कर मथुरा किस तरह
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