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महालक्ष्मी व्रत कथा
पुत्र
और एक एक कन्या हुई, जव नाम गिनाये गये, तो कुल ४८ पुत्रों
गये हैं। इससे सूचित होता है, कि
रानियां नहीं थीं
।
साढ़े सतरह यह
राजा अग्रसेन के
तथा १६ कन्याओं के नाम दिये वस्तुतः राजा के साढ़े सतरह गिनती अग्रवालों के इतिहास में बड़े महत्व की है। साढ़े सतरह रानियां थीं, उन्होंने साढ़े सतरह यज्ञ किये। उनसे साढ़े सतरह गोत्र चले और कुछ अनुश्रुतियों के अनुसार उनके साढ़े सतरह ही पुत्र थे । यह साढ़े सतरह की गिनती अग्रवालों में जो इतने महत्व को प्राप्त हुई, उसका कारण उनमें साढ़े सतरह गोत्रों का होना ही है । इतने गोत्र क्यों चले, इसी की व्याख्या के लिये रानियों, यज्ञों आदि में भी यह गिनती जोड़ी गई प्रतीत होती हैं । जैसा कि हम पहले लिख चुके हैं, अग्रवालों में ये गोत्र प्राचीन आग्रेय गण के विविध कुलों व परिवारों को सूचित करते हैं, जिनका कि गणशासन में बड़ महत्व था । इस विषय को यहां दुहराने की आवश्यकता नहीं । गोत्रों के अतिरिक्त अन्य स्थानों पर साढ़े सतरह की संख्या को ले आना ऐतिहा सिक तथ्य पर आश्रित प्रतीत नहीं होता । यही कारण है, कि परम्परागत अनुश्रुति के अनुसार रानियों की संख्या साढ़े सतरह या अठारह लिख कर भी महालक्ष्मीव्रत कथा का लेखक उनके नामों की गिनती पूरी नहीं कर सका। इस ग्रन्थ में राजा अग्र की रानियों, पुत्रों व कन्याओं के जो नाम दिये गये हैं, वे कहां तक सत्य हैं, यह कहना कठिन है । अग्रवाल-इतिहास के अन्य कई लेखकों ने अग्रसेन के पुत्रों के जो नाम दिये हैं, उनसे ये नाम भिन्न हैं। उन लेखकों ने अपने नामों के लिये कोई प्रमाण उपस्थित नहीं किये । पर यहां एक पुराने
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