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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास
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महालक्ष्मीव्रतकथा में राजा अग्र द्वारा स्थापित नगरी का नाम 'ग्रा' दिया गया है । यह बात भी बड़े महत्व की है। 'अग्रा' नाम राजा अग्र ने अपने नाम पर ही रखा । श्रग्रेय शब्द इस 'ग्रा' से ही बना । 'ग्रा' के निवासी 'अग्रायां भवः' अर्थ में आग्रेय कहाये । अग्र शब्द से श्रम और ग्रायण बनते हैं, पर अग्रा से पाणिनीय व्याकरण के अनुसार आग्रेय शब्द बनता है । राजा अग्र के वंशज जहां अग्रवंशी कहाये वहां अग्रा के वासी होने से वे आग्रेय भी कहाये ।
ग्रा नगरी की स्थिति महालक्ष्मीव्रतकथा में गंगा और यमुना नदियों के बीच में हरिद्वार से चौदह कोस पश्चिम की तरफ कही गई है। यह ठीक प्रतीत नहीं होता । हरिद्वार के पास गंगा यमुना के बीच में कोई ऐसा प्राचीन नगर नहीं है, जिसका राजा अग्रसेन के साथ सम्बन्ध हो । यहां स्पष्ट ही महालक्ष्मीव्रतकथा के लेखक को भूम हुवा है सम्भवतः, यह अग्रा नगरी वही है, जिसका नाम आगे चलकर अगरोहा पड़ा, और जिसके विस्तृत खण्डहर इस समय भी उपलब्ध होते हैं । गण का यही स्थान था, और अग्रवाल लोग अब भी इसे अपनी मातृभूमि मानते हैं।
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महालक्ष्मीव्रतकथा में महाराज
की साढ़े सतरह रानियों का उल्लेख है । पर उनके नाम गिनाते हुवे केवल सोलह रानियों के नाम दिये गये हैं । इसी तरह, यह लिखकर कि प्रत्येक रानी के तीन तीन
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