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महालक्ष्मी व्रत कथा
नाधनाः नाप्रजाः सर्वे देवद्युति विभूषिताः उदाराः कीर्तिर्विमला वारुणेन्द्रसमाः भुवि ॥१४० मित्रा चित्रा शुभा शीला शिखा शान्ता रजा चरा शिरा शची सखी रम्भा भवानी सरसा समा ॥ माधवी प्रमुखाश्चैव महिष्यः सार्धसप्तकाः । दशोत्तराः शुभाः राज्ञः तासां पुत्रास्तथा त्रयः ।। तावग्दोत्राः समाजाताः व्यहृताः विविधाध्वं गर्ग गोयलगावालो वात्सिलः कासिलस्तथा सिंहलो मंगलश्चैव भंदलो तित्तलोऽपि च ॥ एरणो धेरणाश्चापि ढिंगलस्तिंगलस्तथा गोभिलो मीतलो तायलस्तुन्दलस्तथा ॥ गवनार्धश्च गोत्राणां सार्धसप्तदशोत्तराः ॥१४१
नहीं था । सब दैवी द्युति से विभूषित थे। वे सब उदार तथा निर्मल कीर्ति वाले थे, मानो पृथिवी पर देवताओं के समान थे। १३६-१४०
(राजा अग्र की) साढ़े सतरह रानियां ये थीं-मित्रा, चित्रा, शुभा, शीला, शिखा, शान्ता, रजा, चरा, शिरा, शची, सखी, रम्भा, भवानी, सरसा, समा, माधवी । माधवी इनमें प्रमुख थी।
इन सब के तीन तीन पुत्र हुवे । इनके इतने ही (साढ़े सतरह ही) गोत्र हुवे, जो यज्ञों से प्रारम्भ हुवे थे। (गोत्रों के नाम ये हैं.--) गर्ग, गोयल, गावाल, वात्सिल, कासिल, सिंहल, मंगल, भंदल, तित्तल,
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