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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास
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यथेन्द्रदेवैर्भुवि चामरावती ॥१३५ नगरे मध्यदेशे च महालक्ष्म्यालयं शुभम् तन्मध्ये कमलादेवी पूजयेन्निशिवासरम् ॥१३६ सार्धसप्तदशैर्यस्तोषयेन् मधुसूदनम् एकदा यज्ञमध्ये तु वाजिमांसोऽब्रवीन्नृप ॥१३७ न मांसैर्जय वैकुण्ठं मयेन दयानिधे
उभाभ्यां रहितो जीवो न हि पापेन लिप्यते ॥१३८ इसके अनन्तर राजा अग्रसेन के पुत्रों का वर्णन है
अग्र पुत्रान् अमी वेद यज्ञादष्टादश कन्यका ।।
रूपवन्तः गुणाढ्याश्च धनधान्यप्रसंकुलाः ॥१३६ है, मानो इन्द्रदेव की अमरावती ही पृथिवी के ऊपर आ गई हो । १३५
उस नगर के ठीक मध्य देश में महालक्ष्मी का शुभ मन्दिर बनवाया गया, जिसमें देवी लक्ष्मी की रात दिन पूजा होती है । १३६ ___ साढ़े सतरह यज्ञों से मधुसूदन ( विष्णु ) संतुष्ट किया। एक बार यज्ञ के बीच में घोड़े के मांस ने इस प्रकार कहा- 'हे राजन् ! मांस तथा मद्य द्वारा स्वर्ग को जय मत करो। हे दयानिधे ! इन दोनों चीजों से रहित जीव कभी पाप से लिप्त नहीं होता ।' १३७-१३८
अग्र की सन्तानों को इस प्रकार समझो, जो पुत्र व अठारह कन्यायें यज्ञ द्वारा हुई थीं, वे सब रूपवान् , गुणों से परिपूर्ण तथा धन धान्य से समृद्ध थे। उनमें से कोई धन से रहित नहीं था, कोई सन्तान से रहित
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