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महालक्ष्मी व्रत कथा
कोटि कोटिं च...... 'मुद्रास्तत्र निवेशयत् ॥ १३२ प्रसादमाला सुखदा वीथिकाश्च चतुष्पथाः वाटिकाः पुष्पवाटीश्च सर: पंकज शोभितम् ॥ १३३ देवमंदिर वापी च गोपुर द्वारशोभिताः पारावतैः सारसैश्च हसैः शाटिक मयूरकैः कल कोकिल गौस्तत्र नाना....... विराजते प्रसून माला फल पल्लवैः...... द्रुमाः ॥ १३४ पुरी विशाला गजवाजिशोभिता सुवर्ण रत्नाभरणादि संकुला प्रभूतयज्ञैः धनधान्यपूरिता
( राजा ने ) अपने वंश का विस्तार किया और ज्ञातियों का सब प्रकार से संवर्धन किया। वहां करोड़ों मुद्रायें लगाई गई । १३१-१३२
बड़े सुखदायक महलों की पंक्तियां बनाई गई, गलियां, चतुष्पथ ( चौराहे ), बाग, फूलों के बगीचे, कमलों से सुशोभित तालाब, देवमन्दिर, बावड़ियां आदि बनवाई गई। वे गोपुर और द्वार से सुशोभित थीं। पारावत, सारस, हंस, शाटिका, मयूर, कोकिल आदि सुन्दर विविध पक्षियों के समूह वहां विराजते थे । वृक्ष फूलों,फलों तथा पत्तों से सुशोभित थे । १३३-१३४
वह विशाल पुरी हाथी घोड़ों से शोभित है, सुवर्ण, रत्न, आभरण आदि से परिपूर्ण है, वहां बहुत यज्ञ होते हैं, वह धनधान्य से भरी हुई
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