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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास
मुजा प्रसादं तव वसेत् नान्यस्मै प्रतिदापयत् ( १ )
येन सा सफला सिद्धिर्भूयात् तव युगे युगे ॥ १२८ मम पूजा कुले यस्य सोऽयवंशो भविष्यति इत्युक्त्वान्तर्दधे लक्ष्मी समुद्दिश्य महावरम् || १२६ अग्रसेन ने नगर की स्थापना की हरिद्वारात् पश्चिमायां दिशि क्रोश चतुर्दशे गंगायमुनयोर्मध्ये पुण्य पुण्यतिरे शुभे
चक्रे चाग्रानगर यत्र शक्रो वशं गतः ॥ १३० द्वादश योजन विस्तीर्णम् आयतं
शुभम्
द्वापरस्यति कालेषु कलावादि गते सति । १३१
करोद्वंशविस्तारं ज्ञातीन् संवर्धयन् ततः
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तेरी भुजाओं में सदा प्रसाद रहे । इससे युग-युग में तेरी सब सिद्धि सफल होवे । जिस कुल में सदा मेरी पूजा होती हैं, ऐसा वह अग्रवंश है । १२८-१२९
ऐसा कहकर, यह महान् वर देकर लक्ष्मी अन्तर्धान हो गई । महालक्ष्मी के प्रसाद से कभी आयु की हानि नहीं होने पाती । १२९
हरिद्वार से पश्चिम की ओर चौदह कोस की दूरी पर, गङ्गा यमुना के बीच में अत्यन्त पुण्य स्थान पर, उस जगह पर जहां कि शक्र को में किया था, ( राजा ने ) अग्रानगर की स्थापना की । १३० यह नगर द्वादश योजन विस्तीर्ण और बड़ा शुभ है । उस समय द्वापर का अन्त हो चुका था और कलि का प्रारम्भ हो गया था । वहां
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