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महालक्ष्मी व्रत कथा
ततो आविरभवत् देवी द्योतय ती वनांतरम् ॥ १२२
उवाच मधुरा वाणी प्रीता लक्ष्मी दयान्विता श्री उवाच तपसो विरमतां राजन् ...... वैश्यवंश ॥ १२३ गार्हस्थ्यस्थमनौपम्यं धर्म विद्धि सनातनम् ॥ १२४ आश्रमाः सर्ववर्णाश्च गृहस्थे हि व्यवस्थिताः कुरु त्वमाज्ञया तुभ्यं दास्यामि सकलाधिकाम् ॥ ११५ तव वंशे मही सर्वा पूरिता च भविष्यति तव वंशे जातिवर्गोषु कुलनेता भविष्यति ॥ १२६ अद्यारभ्य कुल तव नाम्ना प्रसिध्यति
अग्रवंशीया हि प्रजाः प्रसिद्धाः भुवन त्रये ॥ १२७ प्रगट हुई । दया से पूर्ण, प्रसन्न हुई लक्ष्मी ने मधुर वाणी से इस प्रकार कहा । १२२-१२३
लक्ष्मी ने कहा---
हे राजन् ! हे वैश्य वंश के (प्रकाश)! इस तप को बन्द करो। गृहस्थ धर्म बड़ा अनुपम हैं, इस सनातन धर्म को समझो। सब आश्रम
और सब वर्ण गृहस्थ में ही व्यवस्थित हैं। तुम मेरी आज्ञा के अनुसार करी, मैं तुम्हें सब वैभव, ऋद्धि प्रदान करूंगी । १२३-१२५ ___ यह सारी पृथिवी तेरे वंश से पूरित होगी । तेरे वंश में सब जाति
और वर्णों के कुल नेता होंगे। आज से लगाकर यह कुल तेरे नाम से प्रसिद्ध होगा। अग्रवंशी प्रजा तीनों लोकों में प्रसिद्ध होगी। १२६-१२७
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