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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास प्राप्त सौभाग्य हीनास्ते करिष्यन्ति व्रतं न ये धन पुत्र सुखहीन! जन्मजन्मान्तरे सदा ॥११६
आदिष्य श्रीव्रतं कृष्ण अनुज्ञाप्य च पाण्डवान् जगाम रथमारूढो माधवः स्वकुशस्थलीम् ॥१२०
राजा तथाविधिं कृत्वा हस्तिनापुरमाययो । शौनक उवाच
ततः किमकरोत् राजा मृत हि तपानिधे || १२१
सूत उवाच
युगद्वयं तपस्तेपे कालिन्दी कलकानने
भाग्यवान होगा । जो यह व्रत नहीं करते, वे सौभाग्य से रहित हैं, वे जन्म जन्मान्तर में भी धन, पुत्र तथा सुख से हीन होते हैं । ११८-११९
इस लक्ष्मीव्रत का पाण्डवों को अनुज्ञापन करके कृष्ण अपनी कुशस्थली में चले गये । राजा ( पाण्डव ) भी विधिपूर्वक यह व्रत कर के हस्तिनापुर चले आये । १२०-१२१
शौनक ने कहा
हे तपोनिधे ! सूत ! यह बताओ, कि तब राजा ( अग्र ) ने क्या किया ? १२१
सूत ने कहा
उसने यमुना के सुन्दर तट पर दो युग तक तपस्या की । उसके बाद सम्पूर्ण वन के मध्यभाग को प्रकाशित करती हुई देवी ( लक्ष्मी )
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