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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास
वश
भवतु ते शक्रो सदेवो बलवाहनः ॥ ६२
आधार अभवत्येषा कथाममुतवान्विता ( १ )
भुवि येषां गृहे पूजा लिखिता चापि पुस्तकी ( ? ) ॥ ३
तदहं न विमोक्ष्यामि यावती पृथिवीमिमा
[ प्रसादं च स्वयं भुक्त्वा नान्यस्मै प्रतिपादयेत् ॥६४ विप्रान् भोजयेत् विद्वान् श्रीरजं भालके दधन् यस्य गेहे भवेत् पूजा तस्य दारिद्र्यनाशनम् ॥६५
शत्रुरोग भयं नास्ति कुल कीर्ति प्रवर्धनम् । ] पुत्र पौत्र कुलैः सार्धं भुंदव राज्यमकण्टकम् ॥६६
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'जब तक चन्द्र और सूर्य हैं, मैं तेरे कुल को नहीं छोडूंगी । सब देवताओं, सेना तथा वाहन के साथ इन्द्र तेरे वश में हो जावे ।'
इस संसार में जिनके घर में ( लक्ष्मी की ) पूजा होती है, या जिन के पास ( इस पूजा की ) पुस्तिका भी है, उन के मैं सदा साथ रहूंगी। जब तक यह पृथ्वी है, मैं उन्हें न छोडूंगी । ९३-९४
[ ( लक्ष्मी पूजा का ) प्रासाद पहले स्वयं खाकर फिर दूसरे को न
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दे । विद्वान पुरुष को चाहिए कि अपने मस्तक पर लक्ष्मी की रज धारण कर ब्राह्मणों को भोजन करावे । जिस के घर में लक्ष्मी पूजा होती है, उस का दरिद्र नष्ट हो जाता है । उसे शत्रु या रोग का भय नहीं रहता, उस की कुल तथा कीर्ति बढ़ती है । ९४-९६ ]
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