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देवी महालक्ष्मी प्रगट हुई
उवाच मधुरा
श्री उवाच
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मासान्तं पौगीमासीषु तारापत्युदये सति
प्राविभूर्ता महालक्ष्मी कोटिचन्द्र समा द्युतिः ॥८६
वाणी
साधूनामभयंकरी
महालक्ष्मी व्रत कथा
ू
वरं ब्रह महाराज यस्ते
ददाम्यद्यैव सकलं तव पूजा
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मनसि वर्तत
प्रतोषिता ॥६०
राजोवाच
यदि देहि वरं देवि शक्रं मम वशं नय ॥ ६१
श्री उवाच
तव कुलं न विमोक्ष्यामि यावच्चन्द्रदिवाकरौ
एक मास पूर्ण होने पर पूर्णमासी के दिन जब चन्द्रमा का उदय हो गया, तो देवी महालक्ष्मी प्रगट हुई, उसकी द्युति करोड़ चन्द्रमाओं के समान थी । ८९
उस महालक्ष्मी ने अपनी ऐसी मधुर वाणी से, जो सत्पुरुषों के लिये भयंकर थी, इस प्रकार कहा
'हे महाराज, वह वर मांगो, जो तुम्हारे हृदय में है ।'
राजा ने कहा
'हे देवि, यदि वर देती हो, तो इन्द्र को मेरे वश में ले आओ।'
लक्ष्मी ने कहा
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