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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास विषय को स्पष्ट करने के लिये हमने इसमें कहीं कहीं शीर्षक दे दिये हैं, और कुछ ऐसी पंक्तियां छोड़ भी दी हैं, जिनका प्रकरण में कोई अभिप्राय प्रतीत नहीं होता। महालक्ष्मी का महात्म्य
तस्य नश्यन्ति पापानि श्री लक्ष्मी अचला भवेत् अचिरेण जयते शत्रून् पुत्रान् पौत्रान् यशो लभेत् ॥८५ वहते विभवो नित्यं वशं यान्ति महीतलम् आयुरारोग्य नितरामन्ते मोक्षमवाप्नुयात् ॥८६
राजा अग्र लक्ष्मी की उपासना के लिये गए ततो....... 'गत्वा राजा पूजा समारभत् शीर्षस्य नन्दाम् ( ? ) प्रारभ्य पौर्णमासी तिथावधि ॥८७ मासपर्यन्तमकरोत् राजाग्रो विशांपतिः ॥८८
उसके पाप नष्ट हो जाते हैं, श्री लक्ष्मी उसमें अचल हो जाती है । वह शीघ्र ही शत्रुओं को जीत लेता है, वह पुत्र, पौत्र और यश को प्राप्त करता है, वह सदा धनी व वैभवपूर्ण रहता है, और अन्त में वह मोक्ष को प्राप्त कर लेता है । (८५-८६)
... विशों के स्वामी राजा अग्र ने ( इस लक्ष्मी की) पूजा का मार्गशीर्ष मास की प्रथमा के दिन प्रारम्भ किया, और मार्गशीर्ष पूर्णिमा तक पूरे एक मास तक पूजा की । (८७-८८)
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