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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास
इस पुस्तक में मैंने अग्रवाल जाति को लिया है, उसके सम्बन्ध में जो भी सामग्री मिल सकी, सब को एकत्रित कर मैंने इस जाति की उत्पत्ति तथा विकास के प्रश्न पर प्रकाश डालने का यत्न किया है । साथ ही, प्रसंगवश कुछ अन्य जातियों की उत्पत्ति पर भी विचार किया है, और जातिभेद के विकास के सम्बन्ध में अपने कुछ विचार प्रगट किये हैं।
मैं यह भली भांति जानता हूं, कि जातिभेद का रूप इस समय भारत में बड़ा विकृत है । इस जातिभेद ने भारत के निवासियों के बीच में एक तरह की दीवारें सी खड़ी की हुई हैं, जिन्हें गिराकर सब भारतवासियों को एक करने तथा एक प्रकार की सामाजिक व राष्ट्रीय एकता स्थापित करने का प्रयत्न बहुत से सुधारक लोग कर रहे हैं। ऐसे कुछ सुधारक जातीय इतिहासों को पसन्द नहीं करते । उनका खयाल है, कि जातीय इतिहासों से जातीय विभिनिता की भावना को प्रोत्साहन मिलता है, और सुधार के कार्य में बाधा पड़ती है। पर मेरा विचार यह नहीं है । मैं समझता हूँ, कि जैसा महाभारतकार ने कहा है---इतिहास एक ऐसा प्रदीप है, जो मोहरूपी आवरण को हटा कर सब वस्तुओं का यथावत् रूप सामने ला देता है, और मनुष्यों को सच्चा ज्ञान कराने में सहायता देता है। जब हम यह समझ जायेंगे, कि भारत में जातिभेद का विकास कैसे हुवा, तो हमारे लिये यह समझना भी सम्भव हो जायगा, कि जिन परिस्थियों में इस विशेष संस्था का विकास हुवा था, उनमें यदि परिवर्तन आ जावे, तो इस संस्था में भी परिवर्तन आना आवश्यम्भावी है। इतिहास किसी पद्धति, संस्था व वस्तु का न पक्ष लेता है, न उसका विरोध करता है । इतिहास का कार्य वस्तु के रूप को यथावत् प्रकाशित करना है। इससे मनुष्यों को अपना भावी मार्ग निश्चित करने में बड़ी सहायता मिलती है।
जातिभेद का रूप इस समय चाहे कितना ही विकृत हो, पर मेरा यह विचार है, कि भारतीय इतिहास में इस संस्था का बड़ा महत्व है।
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