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सूत्रम्
६४३॥
ण्डाणं समाहियाणं पन्नाणमंताणं इह मुत्तिमम्गं, एवं (अवि) एगे महावीरा विपरिक्कमंति, आचा०
पासह एगे अवसीयमाणे अणत्तपन्ने से बेमि, से जहावि (सेवी) कुंमे हरए विणिविट्ठचित्ते ॥६४३॥ पच्छन्नपलासे उम्मग्गं से नो लहइ भंजगा इव संनिवेसं नो चयंति एवं ( अयि) एगे
अणेगरूवेहि कुलेहिं जाया रूवेहि सत्ता कलुणं थणति नियाणओ ते न लभंति मुक्ख, अह पास तेहिं कुलेहिं आयत्ताए जाया गंडी अहवाकोढी, रायसी अवमारियं काणियं झिमियं चेव, कुणियं सुज्जियं तहा ॥१॥ उदरिंच पास मूयं च सुणीयंत्र गिलासणि वेवई पीढसप्पि च, सिलिवय महुमेहणि ॥२॥ सोलस एएरोगा, अक्खाया अणु पुवसो अहणं फुसंति आयंका, फासा य असमंजसा ॥३॥ मरणं तेसिं संपेहाए उववायं चवणं च नच्चा, परियागं
च संपेहाए (सू० १७२ )
स्वर्ग तथा मोक्ष, तथा तेनां कारणो तेमज संसारनां कारणोने आवरणरहित (केवळ) ज्ञानना सद्भावथी जे माणस जाणे; अने 8 आमरी (मनुष्य)-लोकमां मनुष्योनो धर्म समजावे एटले, ते घातिकर्म दूर थयां पछी; पोते अघातिकर्मरूप [शरीरधारी] मनुष्यलपणामां रहेला थको धर्म कहे छे:
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