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आचा०॥४
IP पण जेम-बौद्धमतमां भीत विगेरेमाथी पण धर्मोपदेश प्रकट थाय छे. तेम जैनधर्ममां नथी; अथवा जेम, वैशेषिकोनुं उलुक भाववडे पदार्थोनुं बताववापणुं छे, ए, अमारुं (जैनशासन) नथी.
सूत्रम प्र.-शा माटे ? उ०-घातिकर्म क्षय थया पछी, केवळ ज्ञान उत्पन्न थवाथी मनुष्यपणामां रहेलाज (तीर्थकर) पोते कृतार्थ ॥६४४॥ थया छतांपण, जीवोना हितने माटे मनष्य अने देवोनी सभामां धर्मनो उपदेश करे छे.
H॥६४४॥ प्र.-तीर्थङ्करज धर्म कहे छे, के, बीजो पण कहे छे ? उ०-बीजो पण कहे छे. जेने विशिष्टज्ञान होय, अने सारीरीते • पदार्थोनो परिच्छेदक होय; ते धर्मोपदेश करे छे. ते कहे छे:
जेओ अतींद्रियज्ञानि छे, अथवा श्रुत केवळी छे, तेओ धर्म कहे छे. एवं शस्त्रपरिज्ञा नामना १ला अध्ययनमां कहेल छे. (तेथी 81 आ प्रत्यक्ष सूचक-विशेषणवडे मूचव्यु के,) ते विशिष्टज्ञानीए आ एकेन्द्रिय विगेरे जातीओ बधा प्रकारो एटले सूक्ष्मवादर पर्याF -अपर्याप्तरूपे बरोबर रीते [शंकारहित ] जाणेली छे, तेज साधु धर्म कहे छे. पण, एम न जाणनारो बीजो ( अजाण ) धर्म
कहेतो नथी. तेज कहे छे:___'स आख्याति' ते तीर्थङ्कर अथवा सामान्य केवळी अथवा अतिशय ज्ञानी [जातिस्मरण-ज्ञानवाळा, अवधिज्ञानी, मनःपर्यव M. ज्ञानी] अथवा श्रुत केवळी होय ते कहे छे. प्र०-शुं कहे छे, जेनावडे जीव विगेरे पदार्थो जणाय छे, ते ज्ञान मति विगेरे पांच है।
प्रकारनुं छे, ते, प्र०-ते ज्ञान केवु छे ? उ०-तेवू बीजे नथी, माटे 'अनीदृशं' हे, अथवा सकल [वधा] शंसयने दूर करवावडे धर्म संभळावता तेज पोतानुं अनन्य सदृश (अनुपम) ज्ञान बतावे छे, [अर्थात् संसारी ज्ञानथी तृष्णा वधे, पण तेमना उपदेशना ज्ञानथी
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