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आचा०
॥३३५॥
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जुदी जुदी जातिमां सेंकडोवार भोगव्या छे.
संते य अविभ्हइउं असोइउं पंडिएण य असंते । सक्का हु दुमोवमिअहिअएण हिअं घरंतेण ॥ २ ॥ पंडित पुरुषे प्राप्तिमां आश्चर्य न करं; अने अप्राप्तिमां नाखुश थधुं नहि. झाडनी उपमावाळा हृदयवडे हितने धारनारा पुरुषने शक्य छे. (झाड बधां दुःख सहे; पण त्यांथी खसे नहि; तेम हृदय स्थिर करी दुःखसुख सहेबां.)
होऊण कट्टी, पुवई विमलपंडरच्छत्तो । सो चेव नाम भुज्जो अणाहसालालओ होइ ॥ ३ ॥ चक्रवर्त्तिके, पृथ्वीपति निर्मळ सफेद छत्रने धरनारो पहेलां पोते बन्यो अने तेज पुरुष पोते रहेनारो (तेज जन्ममां) अनाथ आश्रममां भाग्यवशथी बने छे. अथवा एक जन्ममां जुदी जुदी अवस्थानी नीच उंचपणानी स्थिति कर्मवशथी अनुभवे छे, तेथी उंच-नीच गोत्रनी कल्पना मनमांथी काढीने तथा बीजा पण मनना विकल्प दूर करीने शुं करतुं ? ते कहे छे:
जीवने संसारमां आवां उंच-नीच पद हमणा थाय छे. पछीथी थवानां छे, अने पूर्वे थयां छे, एवं विचारीने शिष्यने गुरु कहे छे केः - तारी तीक्ष्ण बुद्धिथी जाण के, जीवने कर्मवशथी मुख आवे छे, तेम दुःख पण आवे छे, तथा तेनां कारणो पण विचार, (जीवे जेवां पुन्य पाप कर्यो होय; तेवां सुखदुःख मळे छे.)
अविगान पणे प्रणीओ सुखने इच्छे छे. अहींयां जीवजंतु प्राणी विगेरे शब्दोपयोग लक्षणवाळां द्रव्यना मुख्य शब्दोने | छोडीने “ सत्तावाचि " शब्द “ भूत " शब्दने लेवाथी एम सूचव्यं के, जेम आ उपयोग लक्षणवाळो पदार्थ अवश्य सत्ताने धारण
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सूत्रम्
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