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करे छे, ते मुखने वांच्छे छे, अने दुःखने धिकारे छे, सुख पुन्यना उदयथी छे, तेथी एम जाणवू के, वधी पण शुभ प्रकृतिओ पु-15 आचा० न्यना उदयथी छे जेथी शुभ नाम गोत्र आयुष्य विगेरे कर्म प्रकृतिओने दरेक जीव चाहे छे अने अशुभने निंदे छे आ प्रमाणे छे |
सूत्रम् तो शुं करवू ते कहे छे. ॥३३६॥
समिए एयाणुपस्सी, तं जहा-अन्धत्तं बहिरत्तं मृयत्तं काणत्तं कुटत्तं खुजतं वडभत्तं सामत्तं सबलत्तं P॥३३६॥
सह पमाएणं अणेगरुवाओ जोणीओ संघायइ विरूवरूवे फासे परिसंवेयइ (सूत्र ७८)
अथवा शुभ अशुभ कर्म वधा जीवोमां जोइने डाह्या पुरुषे ते जीवोने अप्रिय होइ तेवू कृत्य न कर, एवो शास्त्रकारनो उपदेश छे, आ संबन्धमां " नागार्जुनीया " कहे छे.
"पुरिसेणं खलु दुक्खुव्वेअ सुहेसए"
जीव दुःखने काढवा तथा सुखने मेळववा इच्छे छे. तेथी जीवनी प्ररूपणा करवी अने ते पृथ्वी पाणी वायु अग्नि वनस्पती ६ सूक्ष्म बादर विकल पंचेन्द्रिय संज्ञो असंज्ञीपर्याप्ता अपर्याप्ता विगेरे पहेला अध्ययनमां बताव्या छे अने ते दुःखने छोडवानी इच्छा
बाला तथा सुखने मेळववानी इच्छावाला जीवोनुं पोतानी उपमाए मानता साधुए पोताना मुखना माटे जोवोने दुःख आपवान P हिंसा विगेरे स्थान छोडवा इच्छता पुरुषे पंच महावतोमा पोतानो आत्मा स्थापन करवो, अने ते महावतो पूरां पाळवा माटे उत्तर
गुणो पण पाळवा जोइए तेज बात आ मूत्रमा लाव्या छे, ते कहे छे.
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