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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥३३४॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अहंकार, दीनता, न करवां तेवुं सूत्रमां कथं छे. कारण के अनादि संसारमां भटकता जीवे भाग्यने आधारे घणी वार उंच नीच गोत्रनां स्थान अनुभवेलां छे. तेथी कोइ वखत उंच नीच गोत्र मेळवीने डाह्यो पुरुष जे खराब तथा सारी वस्तुने ओळखे छे ते उंच गोत्र विगेरेथी अहंकार न करे. कां छे केः “सर्व सुखान्यपि बहुशः प्राप्तान्यटता मयाऽत्र संसारे । उच्चैः स्थानानि तथा, तेन न मे विस्मयस्तेषु ॥ १ ॥ बधां ए सुखोने में आ संसारमां भमतां मेळव्यां छे. उंच स्थान पण मेळव्यां छे, तेथी हवे मने तेनामां कांइ आश्चर्य जोवामां आवतुं नथी. जइ सोऽवि णिज्जरमओ पडिसिद्धो अट्टमाण महणेहिं । अवसेस मयट्टाणा, परिहरि अन्वा पयतेणं ॥२॥ जो, निर्जराने माटे ऊंच गोत्रना मदनो निषेध कर्यो छे, तोपण आठ मानने मथनारा साधुओए प्रयत्नवडे बीजां मदस्थान पण त्यागी देवां. तेजप्रमाणे नीच गोत्रमा के निंदनीक स्थानमा उत्पन्न थइने दीनता न करवी. तेज सूत्रमां कां छे केः "नोकुप्पे" भाग्यवशथी लोकमां निंदनीक जाति कुळ रूप वळ लाभ विगेरेमां ओछापशुं पामीने साधुए क्रोध न करवो मनमां विचार के मारे नीच स्थान अथवा बीजाना हलका शब्द सांभळीने मारे दुःख शा माटे मानवुं, में पूर्वे तेवुं घणीवार अनुभव्युं छे तेथी दीनता न करवी कं छे के. " अवमानात्परिभ्रंशाद्वधबन्धधनक्षयात् । प्राप्ता रोगाश्च शोकाश्च जात्यन्तरशतेष्वपि ॥ १ ॥ अपमानथी नीच दशा थवाथी अथवा वध बन्ध के धनना क्षयेथी माणसे खेद न करवो कारण के पूर्वे आ जीवे रोग शोक For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥३३४॥
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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