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________________ वसवराजीयम् ] ( ४८६ ) [ बलालसेन के पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग किया है तथा अनेक यवनाचार्यों का भी उल्लेख किया है । डॉ० कीथ ने ( ए० बी० कोथ ) अपने 'संस्कृत साहित्य के इतिहास' में इनकी अनेक कविताओं को उदधृत किया है । 'बृहत्संहिता' में ६४ छन्द प्रयुक्त हुए हैं । पेपीयते मधुमध सह कामिनीभि जेगीयते श्रवणहारि सवेणवीणम् । बोभुज्यतेऽतिथि सुहृत्स्वजनैः सहान्न मब्दे सितस्य मदनस्य जयावघोषः ॥ 'वसन्त में कामिनियों के साथ में अच्छी तरह मधुपान किया जाता है; वेणु और वीणा के साथ श्रवणसुखद गीतों का प्रचुर गान किया जाता है । अतिथियों, सुहृदों और स्वजनों के साथ खूब भोजन किये जाते हैं और सित के वर्ष में कामदेव का जयघोष चलता है ।' आधारग्रन्थ- - १. भारतीय ज्योतिष का इतिहास- डॉ० गोरख प्रसाद । २. भारतीय ज्योतिष - (हिन्दी अनुवाद) शंकर बालकृष्ण दीक्षित । ३. भारतीय ज्योतिषडॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री । ४. संस्कृत साहित्य का इतिहास- डॉ० कीथ ( हिन्दी अनुवाद ) | वसवराजीयम् - आयुर्वेदशास्त्र का ग्रन्थ । इस ग्रन्थ के रचयिता वसवराज आन्ध्रप्रदेश के निवासी थे। इनका समय बारहवीं शताब्दी का अन्तिम चरण है । वसवराज शिवलिंग के उपासक थे- शिवलिंगमूत्तिमहं भजे पृ० २९० । इनके पिता का नाम नमः शिवाय था । ग्रन्थकर्त्ता का जन्म नीलकण्ठ वंश में हुआ था और इनके जन्मस्थान का नाम कोट्टूर ग्राम था। इस ग्रन्थ का प्रचार दक्षिण भारत में अधिक है । इसमें २५ प्रकरण हैं तथा नाडीपरीक्षा, रस-भस्म - चूर्णं गुटिका, कषाय, अवलेह तथा ज्वरादि रोगों के निदान एवं चिकित्सा का विवेचन है । ग्रन्थ का निर्माण अनेक प्राचीन ग्रन्थों के आधार पर किया है - कृते तु चरकः प्रोक्तस्त्रेतायां तु रसार्णवः । द्वापरे सिद्धविद्याभू: कली वसवकः स्मृतः । इस ग्रन्थ का प्रकाशन पं० गोवर्धन शर्मा छांगाणी जी ने नागपुर से किया है । आधारग्रन्थ - आयुर्वेद का बृहत् इतिहास - श्री अत्रिदेव विद्यालंकार | चल्लालसेन - ज्योतिषशास्त्र के प्रसिद्ध आचार्यं । ये मिथिलानरेश लक्ष्मणसेन के पुत्र । इन्होंने ११६८ ई० में 'अद्भुतसागर' नामक ग्रन्थ का प्रणयन किया था । यह ग्रन्थ उनके राज्याभिषेक के आठ वर्षों के पश्चात् लिखा थे गया था । इन्होंने ग्रहों सार्थकता उसके वर्णित के सम्बन्ध में जितनी बातें लिखी हैं उनकी स्वयं परीक्षा करके विवरण दिया है। यह अपने विषय का विशाल ग्रंथ है जिसमें लगभग आठ हजार श्लोक हैं । लेखक ने बीचबीच में गद्य का भी प्रयोग किया है । ग्रन्थ के नामकरण की विषयों के आधार पर होती है । इसमें विवेचित विषयों की सूची इस प्रकार हैसूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, भृगु, शनि, केतु, राहु, ध्रुव, ग्रहयुद्ध, संवत्सर, ऋक्ष, परिवेष, इन्द्रधनुष, गन्धर्वनगर, निर्घात, दिग्दाह, छाया, तमोधूमनीहार, उल्का, विद्युत्, वायु, मेघ, प्रवर्षण, अतिवृष्टि कबन्ध, भूकम्प, जलाशय, देवप्रतिमा, वृक्ष, गृह, वस्त्रोपानहा
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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