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________________ वसिष्ठधर्मसूत्र ] ( ४८७ ) [वसिष्ठधर्मसूत्र सनाच, गज, अश्व, विडाल आदि [ यह सूची 'भारतीय ज्योतिष' से उद्धृत है ] इस त्र्य का प्रकाशन प्रभाकरी यन्त्रालय काशी, से हो चुका है। आधारग्रन्थ- १. भारतीय ज्योतिष-डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री। २.भारतीय ज्योतिष का इतिहास-डॉ० गोरख प्रसाद । वसिष्ठधर्मसूत्र-कुमारिलभट्ट ने अपने 'तन्त्रवात्तिक' में 'वसिष्ठधर्मसूत्र' का सम्बन्ध ऋग्वेद' के साथ बतलाया है। इसमें सभी वेदों के उद्धरण प्राप्त होते हैं अतः 'पसिष्ठधर्मसूत्र' को केवल 'ऋग्वेद' का धर्मसूत्र नहीं माना जा सकता। इसके मूलरूप में कालान्तर में परिबृंहन, परिवधन एवं परिवर्तन होता रहा है और सम्प्रति इसमें ३० बध्याय पाये जाते हैं। वसिष्ठधर्मसूत्र' का सम्बन्ध कई प्राचीन ग्रन्थों से. है। इसमें 'मनुस्मृति' के लगभग ४० श्लोक मिलते हैं तथा 'गौतमधर्मसूत्र' के १९ वें अध्याय तथा 'वसिष्ठधर्मसूत्र' के २२ वें अध्याय में अक्षरशः साम्य दिखाई पड़ता है। प्रमाणों के अभाव में यह कुछ भी नहीं कहा जा सकता कि इनमें से कौन-सा ग्रन्थ परवर्ती है और कौन पूर्ववर्ती। 'वसिष्टधर्मसूत्र' की विषयसूची इस प्रकार है (१) धर्म की परिभाषा तथा आर्यावर्त की सीमा, पापी के लक्षण, नैतिक पाप, एक ब्राहण का किसी भी तीन उच्च जातियों से विवाह करने का नियम, ६ प्रकार के विवाह, राजा का प्रजा के आचार को संयमित करने वाला मानना तथा उसे कर के रूप में षष्ठांश ग्रहण करने की व्यवस्था । (२) चारो वर्णों के विशेषाधिकार एवं कर्तव्य कावर्णन, विपत्तिकाल में ब्राह्मण का क्षत्रिय या वैश्य की वृत्ति करने की छूट, ब्राह्मण द्वारा कतिपय दिशिष्ट वस्तुओं के विक्रय का निषेध, व्याज लेना निषिद्ध एवं व्याज के दर का वर्णन । (३) अपढ़ ब्राह्मण की निन्दा, धन-सम्पति प्राप्ति के नियम, आततायी का वर्णन, पंक्ति का विधान आदि । ( ४ ) चारो वर्णों के निर्माण को कर्म पर आश्रित मानना, सभी वर्गों के साधारण कत्र्तव्य, जन्म, मृत्यु, एवं अशौच का वर्णन, अतिथि-सत्कार, मधुपर्क आदि । (५) स्त्रियों की आश्रितता तथा रजस्वला नारी के नियम । (६ ) आचार्य की प्रशंसा तथा मल-मूत्रत्याग के नियम, शूद्र तथा ब्राह्मण की विशेषताएं, शूद्र के घर पर भोजन करने की निन्दा। (७) चारो आश्रमों तथा विद्यार्थी का कत्तव्य । (८) गृहस्थ-कत्तंव्य एवं अतिथि-सत्कार । (९) अरण्यवासी साधुओं का कत्तंव्य । (१०) संन्यासियों के कत्र्तव्य एवं नियम (११) विशिष्ट आदर पानेवाले ६ प्रकार के व्यक्ति । उपनयनरहित व्यक्तियों के नियम । (१२) स्नातक के आचार-नियम । (१३) वेदाध्ययन प्रारम्भ करने के नियम । (१४) वजित एवं अवजित. भोजन । ( १५) गोद लेने के नियम, वेदों के निन्दक तथा शूद्रों के यज्ञ कराने वालों तथा अन्य पापों के नियम । (१६ ) न्यायशासन तथा राजा के विषय । (१७) औरसपुत्र की प्रशंसा, क्षेत्रजपुत्र के सम्बन्ध में विरोधी मत । (१८) प्रतिलोम जातियों तथा शूद्रों के लिए वेदाध्ययन का निषेध । ( १९) राजा का कर्तव्य एवं पुरोहित का महत्त्व । (२०) जाने या अनजाने हुए कर्मों के प्रायश्चित्त । ( २१ ) शूद्रा एवं ब्राह्मण स्त्री के साथ व्यभिचार के लिए प्रायश्चित्त की व्यवस्था । (२२ ) सुरापान तथा संभोग करने पर ब्रह्मचारी के लिए प्रायश्चित्त की व्यवस्था। (२३) कृच्छ्र तथा अतिकृच्छ्र। ( २४)
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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