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________________ भिकन्या परिणय चम्पू ] ( ३५५ ) [ मेलसंहिता क - विजयसिंह गुणी कृत 'न्यायसार टीका' । ख — जयतीर्थं रचित 'न्यायसार टीका' । ग - भट्टराघवकृत 'न्यायसार विचार' । घ - - जयसिंह सुरि रचित 'न्यायतात्पर्यदीपिका | आधारग्रन्थ - १ - भारतीय दर्शन-आ० बलदेव उपाध्याय । २- हिन्दी तर्कभाषा ( भूमिका ) आ० विश्वेश्वर । भिल्लकन्या परिणय चम्पू – इस चम्पूकाव्य का प्रणेता कोई नृसिंह भक्त अज्ञातनामा कवि हैं । यह रचना अपूर्ण है और इसमें नृसिंह देवता तथा वनाटपति हेमांग की पुत्री कनकांगी का परिणय वर्णित है । यह ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित है। और इसका विवरण ट्रोनियल कैटलाग वौल० १, पार्ट १, ९१०-१३ में प्राप्त होता है । कनकांगी के शब्दों में उसका परिचय इस प्रकार है- भिज्ञान्वये जनिमें जनको हेमांगको वनाटपतिः । कनकांगी जानीहि त्वं मां भो देवदेवेश ॥ आधारग्रन्थ -- चम्पू काव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन - डॉ० छविनाथ त्रिपाठी । - भुशुण्डी रामायण – यह रामभक्ति की रसिक शाखा का प्रधान उपजीव्य ग्रन्थ है । इसमें ३६ हजार श्लोक हैं । इसका निर्माणकाल १४ वीं शताब्दी के आसपास है । इसकी तीन पाण्डुलिपियाँ प्राप्त हैं जिनके आधार पर डॉ० भगवती प्रसाद सिंह ने इसका सम्पादन किया है—-क-मथुरा प्रति-- लिपिकाल सं० १७७९ रीवा प्रति-लिपिकाल सं० १८९९ । ग -- अयोध्या प्रतिलिपिकाल १९२१ वि० सं० । 'मुशुण्डी रामायण' की कथा ब्रह्मा-सुशुण्डी के संवादरूप में कही गई है। इसके चार खण्ड हैं--पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण । पूर्व-खण्ड में १४६ अध्याय हैं जिनमें ब्रह्मा के यश में ऋषियों के राम कथा विषयक विविध प्रश्न तथा राजा दशरथ की तीर्थ-यात्रा का वर्णन है । पश्चिम खण्ड में ७२ अध्याय हैं तथा भरत और रामसंवाद में सीता-जन्म से लेकर स्वयम्बर तक की कथा वर्णित है। दक्षिण-खण्ड में २४२ अध्याय हैं जिसमें रामराज्याभिषेक की तैयारी, वनगमन, सीता हरण, रावणवध तथा लंका से लौटते समय भारद्वाज मुनि के आश्रम में राम-भरत मिलन तक की कथा है। उत्तर- खण्ड में ५३ अध्याय हैं और देवताबों द्वारा रामचरित की महिमा का - गान है। इस रामायण में राम-भक्ति की पोषक शुद्ध भगवलीला का है तथा रामपूर्ण ब्रह्म के साथ-ही-साथ लीला पुरुषोत्तम के रूप में वर्णित हैं । विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी से प्रकाश्यमान ] । [ दो खण्डों में भेलसंहिता - यह आयुर्वेद का ग्रन्थ है। इसके रचयिता का नाम भेल है जो पुनर्वसु आत्रेय के शिष्य थे । 'भेलसंहिता' का उपलब्ध रूप अपूर्ण है और इस पर 'चरकसंहिता' का प्रभाव है; दे० चरक । इस ग्रन्थ का प्रकाशन कलकत्ता विश्वविद्यालय से हुआ है । इसके अध्यायों के नाम तथा बहुत से वचन 'चरकसंहिता' के ही समान हैं । इसका रचनाकाल ई० पू० ६०० वर्ष माना जाता है । इसकी रचना सूत्रस्थान, निदान, विमान, शारीर, चिकित्सा, कल्प तथा सिद्धस्थान के रूप में हुई है । यों तो इसके विषय बहुत कुछ 'चरकसंहिता' से मिलते-जुलते हैं पर इसमें
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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