SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 348
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भविष्यपुराण ] ( ३३७ ) [ भविष्यपुराण कालिंग, सन्देह एवं स्वभावोक्ति । इन्होंने उपमा अलंकार के प्रयोग में नवीनता प्रदर्शित की है। सूक्ष्म मनोभावों की तुलना स्थूल पदार्थों से करने में इन्होंने अधिक रुचि प्रदर्शित की है -- करुणस्य मूत्तिरथवाशरीरिणी विरहव्यथेव वनमेति जानकी । नाटककार के रूप में आलोचकों ने इन्हें उच्चकोटि का नहीं माना है और इनके अनेक दोषों का निर्देश किया है। इनमें अन्वितित्रय का अभाव, वस्तु का अबाधगत्या दूर तक विस्तृत वर्णन, हास्य की कमी, भाषा की दुरूहता, संवादों के वाक्यों की दुरूहता एवं दीर्घविस्तारी वाक्यों का प्रयोग आदि नाट्यकला की दृष्टि से दोष बतलाये गये हैं । इन दोषों के होते हुए भी भवभूति संस्कृत भाषा के गौरव हैंआधारग्रन्थ -- १ - हिस्ट्री ऑफ संस्कृत लिटरेचर - डॉ० दासगुप्त एवं एस० के० ढे० । २–उत्तररामचरित - सं० काणे ( हिन्दी अनुवाद ) । ३ - भवभूति - करमरकर ( अँगरेजी । । ४ - संस्कृत नाटक - डॉ० ए० बी० कीथ ( हिन्दी अनुवाद ) । ५ - कालिदास और भवभूति - डी० एल० राय । ६ - महाकवि भवभूति - डॉ० गंगासागर राय । ७ - संस्कृत कवि-दर्शन - डॉ० भोलाशंकर व्यास । ८-भवभूति और उनका उत्तररामचरित - पं० कृष्णमणि त्रिपाठी । ९ - संस्कृत नाटककार - श्री कान्तिचन्द भरतिया | १० - संस्कृत काव्यकार - डॉ हरदत्त शास्त्री । -आर० संज्ञा दी है । भविष्यपुराण - क्रमानुसार नवीं पुराण | 'भविष्यपुराण' के नाम से ही ज्ञात होता है कि इसमें भविष्य की घटनाओं का वर्णन है । इस पुराण का रूप समय-समय पर परिवर्तित होता रहा है, अतः प्रतिसंस्कारों के कारण इसका मूलरूप अज्ञेय होता चला गया है। इसमें समय-समय पर घटित घटनाओं को विभिन्न युगों या समयों के विद्वानों ने इस प्रकार जोड़ा है कि इसका मूलरूप परिवर्तित हो गया है। ऑफेट ने तो १९०३ ई० में एक लेख लिखकर इसे 'साहित्यिक धोखेबाजी' को वेंकटेश्वर प्रेस से प्रकाशित 'भविष्यपुराण' में इतनी सारी नवीन बातों का समावेश है जिसमे इस पर सहसा विश्वास नहीं होता । 'नारदीयपुराण' में इसकी जो विषय सूची दी गयी है, उससे पता चलता है कि इसमें पाँच प हैं - ब्राह्मपर्व, विष्णुपर्व, शिवपत्रं, सूर्य पर्व एवं प्रतिसर्गपवं । इसकी श्लोक संख्या चौदह हजार है । नवलकिशोर प्रेस, लखनऊ से प्रकाशित 'भविष्यपुराण' में दो खण्ड हैं, - पूर्वाद्ध तथा उद्धराद्धं एवं उनमें क्रमश: ४१ और १७१ अध्याय हैं । इसकी जो प्रतियां उपलब्ध हैं उनमें 'नारदीयपुराण' की विषय-सूची पूर्णरूपेण प्राप्त नहीं होती । इस पुराण में मुख्य रूप से ब्राह्मधर्म, आचार एवं वर्णाश्रमधमं का वर्णन है तथा नागों की पूजा के लिए किये जाने वाले नागपंचमी व्रत के वर्णन में नाग, असुरों एवं नागों से सम्बद्ध कथाएँ दी गयी हैं । इसमें सूर्य पूजा का वर्णन है तथा उसके सम्बन्ध में एक कथा दी गयी है कि किस प्रकार कृष्ण के पुत्र शाम्ब को कुष्ठ रोग हो जाने पर उनकी चिकित्सा के लिए गरुड़ द्वारा शाकद्वीप से ब्राह्मणों को बुलाकर सूर्य की उपासना के द्वारा रोग मुक्त कराया गया था । इस कथा में भोजक एवं मग नामक दो सूर्यपूजकों का उल्लेख किया गया है । अलबेरुनी ने इसका उल्लेख किया है, अत: इसके आधार पर विद्वानों ने इसका समय १०वीं शताब्दी माना है। इसमें सृष्टि की उत्पत्ति के साथ-ही-साथ भौगोलिक वर्णन भी २२ सं० सा०
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy