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________________ भागवत चम्पू] ( ३३८ ) [भागुरि उपलब्ध होते हैं तथा सूर्य का ब्रह्मरूप में वर्णन कर उनकी अर्चना के निमित्त नाना प्रकार के रङ्गों के फूलों को चढ़ाने का कथन किया गया है । 'भविष्यपुराण' में उपासना और व्रतों का विधान, त्याज्य पदार्थों का रहस्य, वेदाध्ययन की विधि, गायत्री का महत्व, सन्ध्या-वन्दन का समय तथा चतुर्वणं विवाह-व्यवस्था का भी निरूपण है। इस पुराण में कलि के अनेकानेक राजाओं का वर्णन है जो रानी विक्टोरिया तक या जाता है। इसके प्रतिसगं पर्व की बहुत-सी कथाओं को आधुनिक विद्वान् प्रक्षेप मानते हैं। इसके भविष्य कथन भी बविश्वसनीय है। आधारग्रन्थ-१-प्राचीन भारतीय साहित्य-भाग १, खण्ड २-डॉ. विन्टरनित्स। २-अष्टादशपुराणदर्पण-पं० ज्वाला प्रसाद मिश्र । ३-पुराण तत्व-मीमांसाश्रीकृष्णमणि त्रिपाठी। ४-पुराण-विमर्श-पं. बलदेव उपाध्याय । ५-पुराणविषयानुक्रमणिका-डॉ० राजबली पाण्डेय । ६-भविष्यपुराण-वेंकटेश्वर प्रेस, बम्बई । भागवत चम्पू-इस चम्पू काव्य की तीन हस्तलिखित प्रतियां प्राप्त होती हैं। । इनमें से दो तंजोर में एवं एक मद्रास में है। तंजोर वाली प्रति में इसके रचयिता का नाम रामचन्द्र भद्र तथा मद्रास वाली प्रति में राजनाथ कवि है। विद्वानों ने इसका लेखक राजनाथ को ही माना है। इनका पूरा नाम अय्यल राजुरामभद्र था जो नियोजी ब्राह्मण थे। इनका समय १६ वीं शताब्दी का मध्य है। कवि ने श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध के आधार पर कंसवध तक की घटनाओं का वर्णन किया है। यह ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित है। इसका विवरण डिस्क्रिप्टिव कैटलॉग मद्रास २११८२७५ में प्राप्त होता है। आधारग्रन्थ-चम्पू काव्य का विवेचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ. छविनाथ त्रिपाठी। भागीरथी चम्पू-इस चम्पू-काव्य के प्रणेत का नाम अच्युत शर्मा है। इनका निवासस्थान जनस्थान था। इनके पिता का नाम नारायण एवं माता का नाम अन्नपूर्णा था। भागीरथीचम्पू' में सात मनोरथ (अध्याय ) हैं जिसमें राजा भगीरथ की वंशावली एवं गङ्गावतरण की कथा वर्णित है। इनकी शैली प्रवाहपूर्ण एवं भाषा भावानुगामिनी है। इसका प्रकाशन गोपाल नारायण कम्पनी, बम्बई से हो चुका है। इस ग्रन्थ का पद्य भाग गद्यभाग को अपेक्षा अधिक मनोरम है। गङ्गोत्तुजतरङ्गरिङ्गण. गणराकाशरङ्गाङ्गणे । साङ्गोपाङ्गकुरङ्गसङ्गिरुचिरापाडायमानाङ्गकैः । रिङ्गन्तीव सरङ्गमङ्गलमहासंभङ्गवाराङ्गना-भङ्गीभङ्गमृदङ्गभङ्गररवैः सत्यं समाप्लावयत् ।।४।४१ ___ आधारग्रन्थ-चम्पू-काव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन-डॉ० छविनाथ त्रिपाठी। भागुरि-संस्कृत के प्राचीन वैयाकरण । मीमांसक जी के अनुसार इनका समय ४००० वि० पू० है। इनके कतिपय नवीन वचनों ( व्याकरण-सम्बन्धी ) के उद्धरण जगदीश तर्कालंकारकृत 'शब्दशक्तिप्रकाशिका' में उपलब्ध होते हैं। इनके पिता का सम्भवतः भामुर नाम था तथा इनको बहिन लोकायंतशास्त्र की प्रणेत्री भागुरी थी
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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