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________________ बाह्मण] ( ३१९ ) [ब्राह्मण विस्तार के साथ सात खण्डों में वर्णित है। ऐसा कहा जाता है कि पांचवीं शताब्दी में 'ब्रह्माण्डपुराण' यवद्वीप गया था और वहां की 'कवि' भाषा में इसका अनुवाद भी हुआ था। इसमें परशुराम की कथा १५५० श्लोकों में २१ से २७ अध्याय तक दी गयी है। इसके बाद राजा सगर एवं भगीरथ द्वारा गंगा अवतारण की कथा ४८ से ५७ अध्याय तक वर्णित है तथा ५९ वें अध्याय में सूर्य और चन्द्रवंशी राजाओं का वर्णन है। विद्वानों का कहना है कि चार सौ ईस्वी के लगभग 'ब्रह्माणपुराण' का वर्तमान रूप निश्चित हो गया होगा। इसमें 'राजाधिराज' नामक राजनीतिक शब्द का प्रयोग देखकर विद्वानों ने इसका काल गुप्तकाल का उत्तरवर्ती या मोखरी राजाओं का समय माना है। दृष्ट्वाजनैरासाद्यो महाराजाधिराजवत् । ३।२२।२८ इस पर महाकवि कालिदास एवं उनकी वैदर्भी रीति का प्रभाव माना गया है। इन सभी विवरणों के आधार पर इसका सयय ६०० ई० के आसपास है। आधारग्रन्थ-१. ब्रह्माण्डपुराण-वेंकटेश्वर प्रेस, बम्बई (१९०६ ई०)। २. पुराणम् भाग ५, संख्या २-जुलाई १९६३ पृ० ३५०-३१९ । ३. प्राचीन भारतीय साहित्य, भाग १ खण्ड २–विन्टरनित्स । ४. पुराणतत्त्व-मीमांसा-श्रीकृष्णमणि त्रिपाठी । ५. पुराणविमर्श-५० बलदेव उपाध्याय । ६. धर्मशास्त्र का इतिहास-काणे (हिन्दी अनुवाद भाग १)। ७. पुराणविषयानुक्रमणिका-डॉ. राजबली पाण्डेय । ८. एन्सियन्ट इण्डियन हिस्टॉरिकल ट्रेडीशन-पारजिटर.। ब्राह्मण-वैदिक वाङ्मय के अन्तर्गत ऐसे ग्रन्थों को ब्राह्मण कहते हैं जिनमें हिन्दूधर्मव्यवस्था तथा यज्ञयाग आदि के सम्बन्ध में सहस्रों नीति नियमों एवं विधिव्यवस्थाओं का निरूपण है। इनमें मुख्यतः कर्मकाण्ड का विवेचन किया गया है। वैदिक संहिताओं के पश्चात् एक ऐसा युग आया जिसमें विभिन्न प्रकार के धार्मिक ग्रन्थों का निर्माण हमा, ब्राह्मण उसी युग की देन हैं। इन ग्रन्थों की रचना गद्यात्मक है तथा इनमें मुख्यतः यज्ञ-याग सम्बन्धी प्रयोगविधान हैं । इन ग्रन्थों का मुख्य लक्ष्य या यागादि अनुष्ठानों से परिचित जनसमुदाय के समक्ष उनका धार्मिक महत्व प्रदर्शित करते हुए नियम निर्धारित करना। प्राचीन समय में इन्हें भी वेद कह कर संबोधित किया जाता था। बापस्तम्ब ने मन्त्रसंहिता एवं ब्राह्मण दोनों को ही वेद कहा है। बापस्तम्ब परिभाषासूत्र' में 'मन्त्रवाह्मणोयज्ञस्य प्रमाणम्', 'मन्त्रबाह्मणारमकोवेदः' ( ३३, ३४) कह कर ब्राह्मण अन्यों को भी वेद की अभिधा प्रदान की गयी है। चूंकि इन ग्रंथों में यश या ब्रह्म का प्रतिपादन किया जाता था, अत: ये ब्राह्मण अन्य कहे गए । [यज्ञ को प्रजापति एवं प्रजापति को यज्ञ माना गया है-'एष वै प्रत्यक्ष यशो यत् प्रजापतिः' शतपथ ब्राह्मण, ४।३।४।३। ब्राह्मणों में मन्त्रों, कर्मो एवं विनियोगों की व्याख्या की गयी है। नात्यं यस्य मन्त्रस्य विनियोगः प्रयोजनम् । प्रतिधनं विधिश्चैव ब्राह्मणं तदिहोच्यते । वाचस्पतिमिश्र । शाबरभाष्य में ब्राह्मणग्रन्थों के प्रतिपाच विषयों का विवरण है-हेतुनिवचनं निन्दा प्रशंसा संशयो विधिः । परक्रिया पुराकल्पो व्यवधारण कल्पना ॥ उपमानं दशैते तु विधयो ब्राह्मणस्य तु । २०१८ इसमें दस विषयों का
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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