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________________ ब्राह्मण ] ( . ३२० ) [ ब्राह्मण उल्लेख है, पर उनमें चार ही प्रधान हैं—विधि, अर्थवाद, उपनिषद् एवं आख्यान । विधिभाग में कर्मकाण्डविषयक विधानों का वर्णन या यज्ञ करने के प्रयोग सम्बन्धी नियमों का निरूपण है । बिधि का अर्थ है - 'यज्ञ तथा उसके अङ्गों-उपाङ्गों के अनुष्ठान का उपदेश ।' यज्ञ के किसी विशेष भाग में किस प्रकार अग्नि को प्रज्ज्वलित किया जाय, वेदी का आकार क्या हो, दर्शपोर्णमासादि यज्ञ करनेवाले व्यक्ति का आचरण क्या हो, अध्वर्युं होता, उद्गाता तथा ब्रह्मा किस प्रकार किस दिशा में मुंह करके बैठें, तथा वे किस हाथ में कुश लें, इन सारी बातों का वर्णन ब्राह्मण ग्रन्थों में होता है । विनियोग — ब्राह्मणों में मन्त्रों के विनियोग का भी विधान किया गया है। किस उद्देश्य की सिद्धि के लिए किस मन्त्र का प्रयोग किया जाय इसकी व्यवस्था ब्राह्मण ग्रन्थों में की गयी है। हेतु — कर्मकाण्ड की विशेष विधि के लिए जिन कारणों का निर्देश किया जाता है वे हेतु कहे जाते हैं । 'अर्थवाद - इसके अन्तर्गत प्ररोचनात्मक विषयों का वर्णन होता है। इसमें उपाख्यान अथवा प्रशंसात्मक कथाओं के माध्यम से यज्ञीय प्रयोगों का महत्व प्रतिपादित किया जाता है तथा ऐसे निर्देश - वाक्य प्रयुक्त किये जाते हैं जिनमें यज्ञों के विधान उल्लिखित रहते हैं। उदाहरण के लिए, किस यज्ञविशेष के द्वारा किस फल की प्राप्ति होगी, किसी यज्ञविशेष के लिए किन-किन विधियों की आवश्यकता होगी, इन सभी आज्ञाओं का निर्देश 'अर्थवाद' के अन्तर्गत किया जाता है। यज्ञ में निषिद्ध पदार्थों की निन्दा एवं विधि का अनुकरण करने वाले वाक्य ही 'अर्थवाद' कहे जाते हैं । उदाहरण के लिए यज्ञ में माष या उड़द का प्रयोग निषिद्ध है इसलिए वाक्य में इसकी निन्दा की जाती है— अमेध्या वै भाषा ( तै० सं० ५ | १ | ८ | १) | अनुष्ठानों, हव्यद्रव्यों एवं देवताओं की प्रशंसा ब्राह्मण ग्रन्थों में अतिविस्तार के साथ की गयी है । निरुक्ति - ब्राह्मण ग्रन्थों में शब्दों की ऐसी निरुक्तियाँ दी गयी हैं जो भाषाशास्त्र की दृष्टि से अत्यधिक उपयोगी हैं। निरुक्त की व्युत्पत्तियों का स्रोत ब्राह्मणों में ही है। ब्राह्मणों में शुष्क अर्थवादों को समझाने के लिए अत्यन्त सरस और रोचक आख्यानों का सहारा लेकर विषय को समझाया गया है। इन आख्यानों का मूल उद्देश्य विधि-विधानों के स्वरूप की व्याख्या करना है । ब्राह्मणों के कतिपय लौकिक आख्यान आनेवाले. इतिहाणपुराण ग्रन्थों के प्रेरणास्रोत रहे हैं। इनमें सृष्टि के विकास क्रम का आख्यान, आर्यों के सामाजिक तथा राजनैतिक जीवन एवं आर्यों तथा अनार्यों के युद्ध के आख्यान प्राप्त होते हैं । 'शतपथ ब्राह्मण' में जलप्लावन की कथा सृष्टि-विद्या की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है । पुरुरवा और उर्वशी का आख्यान, शुनःशेप की कथा आदि साहित्यिक स्तर के आख्यान हैं । भाषा-शैली - ब्राह्मण गद्यबद्ध है । इनमें गद्य का परिमार्जित एवं प्रौढ़ रूप मिलता है । ऐसे नवीन शब्दों एवं धातुओं का प्रयोग किया गया है जो वेदों में प्राप्त नहीं होते । ब्राह्मणों में लोकव्यवहारोपयोगी संस्कृत भाषा का रूप प्राप्त होता है । ब्राह्मणसाहित्य अत्यधिक विशाल था किन्तु सम्प्रति सभी ब्राह्मण उपलब्ध नहीं होते । कतिपय महत्वपूर्ण ब्राह्मणों की केवल नामावली प्राप्त होती है और कई के केवल उद्धरण ही
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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