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ब्रह्माण्डपुराण ]
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[ ब्रह्माण्डपुराण
विष्णु, नारायण, शिव एवं रूप में चित्रित हैं तथा राधा को दुर्गा, सरस्वती, महालक्ष्मी आदि वर्णित किया गया है । अर्थात् श्रीकृष्ण के रूप में एकमात्र परम सत्य तत्व का कथन है तो राधा के रूप में एकमात्र सत्यतत्त्वमयी भगवती का प्रतिपादन । ब्रह्मवैवत्तंपुराण, गीता प्रेस पृ० १० ।
गणेश आदि के अनेक रूपों में
आधारग्रन्थ – १. ब्रह्मवैवर्तपुराण - हिन्दी अनुवाद, गीता प्रेस, गोरखपुर । २. विष्णुपुराण - ( अंगरेजी अनुवाद ) विल्सन । ३. प्राचीन भारतीय साहित्य, भाग. १, खण्ड २ - डॉ० विन्टरनित्स ( हिन्दी अनुवाद ) । ४. पुराणतस्व-भीमासां - श्रीकृष्ण मणि त्रिपाठी । ५. पुराण-विमर्श - पं० बलदेव उपाध्याय । ६. पुराणविषयानुक्रमणिका - डॉ० राजबली पाण्डेय । ७. पुराणम् - खण्ड ३, भाग १ - जनवरी १९६१ पृ० १००-१०१ ।
ब्रह्माण्डपुराण - यह पुराणों में क्रमानुसार अन्तिम या १५ व पुराण है । 'नारादपुराण' एवं 'मत्स्यपुराण' में इस पुराण की जो विषय-सूची दी गयी है उससे पता चलता है कि इसमें १०९ अध्याय तथा बारह हजार श्लोक हैं । 'मत्स्यपुराण' में कहा गया है कि ब्रह्माण्ड के महत्व को प्रदर्शित करने के लिए ब्रह्मा ने जिस पुराण का उपदेश दिया था और जिसमें भविष्य एवं कल्पों का वृत्तान्त विस्तारपूर्वक वर्णित है, वह 'ब्रह्माण्डपुराण' कहा जाता है । [ मत्स्यपुराण अध्याय ५३ ] । समस्त ब्रह्माण्ड का वर्णन होने के कारण इसे 'ब्रह्माण्डपुराण' कहा जाता है। इस पुराण में समस्त विश्व का सांगोपांग वर्णन किया गया है । 'नारदपुराण' के अनुसार इसमें चार पाद या खण्ड थे - प्रक्रिया, अनुषङ्ग, उपोद्घात तथा उपसंहार किन्तु वेंकटेश्वर प्रेस, बम्बई से प्रकाशित प्रति में केवल दो ही पाद हैं, प्रक्रिया तथा उपोद्घात । 'कूर्मपुराण' में इसे 'वायवीय ब्रह्माण्ड' कहा गया है जिससे अनेक पाश्चात्य विद्वान् भ्रमवश इसका मूल 'वायुपुराण' को मानते हैं । पाजिटर एवं विन्टरनित्स दोनों ने ही मूल 'ब्रह्माण्डपुराण' को 'वायुपुराण' का ही प्राचीनतर रूप माना है, किन्तु वस्तुस्थिति यह नहीं है । 'नारदपुराण' के अनुसार वायु ने व्यासजी को इस पुराण का उपदेश दिया था । 'ब्रह्माण्डपुराण' के ३३ से ५८ अध्यायों तक ब्रह्माण्ड का विस्तारपूर्वक भौगोलिक वर्णन प्रस्तुत किया गया है। प्रथम खण्ड में विश्व का विस्तृत, रोचक एवं सांगोपांग भूगोल दिया गया है, तत्पश्चात् जम्बुद्वीप और उसके पर्वत एवं नदियों का विवरण ६६ से ७२ अध्यायों तक है । इसके अतिरिक्त भद्राश्व, केतुमाल, चन्द्रद्वीप, किंपुरुषवर्ष, कैलाश, शाल्मली द्वीप, कुशद्वीप कौन्चशेष, शाकद्वीप एवं पुष्कर द्वीप आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन है। इसमें ग्रहों, नक्षत्रमण्डल तथा युगों का भी रोचक वर्णन है । इसके तृतीय पाद में विश्वप्रसिद्ध क्षत्रिय वंशों का जो विवरण प्रस्तुत किया गया है उसका ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यधिक महत्व है। 'नारदपुराण' की विषय-सूची से ज्ञात होता है कि 'अध्यात्मरामायण' 'ब्रह्माण्डपुराण का ही अंश है, किन्तु उपलब्ध पुराण में यह नहीं मिलता । 'अध्यात्मरामायण' में दार्शनिक दृष्टि से रामचरित का वर्णन है। इसके बीसवें अध्याय में कृष्ण के आविर्भाव एवं उनकी ललित लीला का गान किया गया है। इसमें रामायण की कथा, अध्यात्म रामायण के अन्तर्गत, बड़े