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________________ ब्रह्मवैवर्तपुराण ] ( ३१७ ) [ ब्रह्मवैवर्तपुराण ब्रह्मवैवर्तपुराण - यह क्रमानुसार १० वी पुराण है । 'शिवपुराण' में कहा गया हैं कि इसे ब्रह्म के वित्तं प्रसंग के कारण ब्रह्मवैवत्तं कहते हैं-विवर्तनाद ब्रह्मणस्तु ब्रह्मवैवर्त्तमुच्यते । 'मत्स्यपुराण' के अनुसार इसमें अठारह हजार श्लोक हैं तथा भगवान् श्रीकृष्ण के श्रेष्ठ माहात्म्य के प्रतिपादन के लिए ब्रह्म वाराह के उपदेश का वर्णन किया गया है। इसके चार खण्ड हैं- ब्रह्मखण्ड, प्रकृतिखण्ड, गणेशखण्ड तथा कृष्णजन्मखण्ड | इस पुराण का प्रधान उद्देश्य है श्रीकृष्ण के चरित का विस्तारपूर्वक वर्णन करते हुए वैष्णव तथ्यों का प्रकाशन करना । इसमें राधा का नाम आया है और वे कृष्ण की पत्नी एवं उनकी शक्ति के रूप में चित्रित हुई हैं। 'ब्रह्मवैवत्तंपुराण' में राधा-कृष्ण की लीला अत्यन्त सरस ढंग से वर्णित है तथा गौड़ीय वैष्णव, वल्लभसम्प्रदाय एवं राधावल्लभ सम्प्रदाय में जिन साधनात्मक रहस्यों का वर्णन किया गया है उनका मूल रूप इसमें सुरक्षित है। इसमें राधा को सृष्टि की आधारभूत शक्ति एवं श्रीकृष्ण को उसका बीजरूप कहा गया है - 'सृष्टेराधारभूतात्वं वीजरूपोऽहमच्युत' । 'नारदपुराण' में कहा गया है कि इसमें स्वयं श्रीकृष्ण ने ब्रह्मतत्व का प्रकाशन किया था अतः इसका नाम ब्रह्मवैवतं पड़ा है । १. ब्रह्मखण्ड — इस खण्ड में श्रीकृष्ण द्वारा संसार की रचना करने का वर्णन है जिसमें कुल तीस अध्याय हैं । इसमें परब्रह्म परमात्मा के तत्व का निरूपण किया गया है और उन्हें सबका बीजरूप माना गया है । २. प्रकृतिखण्ड - इसमें देवियों का शुभचरित वर्णित है । इस खण्ड में प्रकृति का वर्णन दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, सावित्री तथा राधा के रूप में है । इसमें वर्णित अन्य प्रधान विषय हैं— तुलसी पूजन विधि, रामचरित तथा द्रौपदी के पूर्वजन्म का वृत्तान्त, सावित्री की कथा, छियासी प्रकार के नरककुण्डों का वर्णन, लक्ष्मी की कथा, भगवती स्वाहा, स्वधा, देवी षष्ठी आदि की कथा एवं पूजन विधि, महादेव द्वारा राधा के प्रादुर्भाव एवं महत्त्व का वर्णन, श्रीराधा के ध्यान एवं षोडशोपचार पूजन विधि, दुर्गाजी की सोलह नामों की व्याख्या, दुर्गाशनस्तोत्र एवं प्रकृति कवच आदि का वर्णन । ३. गणेशखण्ड - इस खण्ड में गणेशजन्म, कर्म एवं चरित का परिकीर्तन है एवं उन्हें कृष्ण के अवतार के रूप में परिदर्शित किया गया है । ४. श्रीकृष्णजन्मखण्ड इसमें श्रीकृष्ण-लीला बड़े विस्तार के साथ कही गयी है और राधा-कृष्ण के विवाह का वर्णन किया गया है । श्रीकृष्ण कथा के अतिरिक्त इसमें जिन विषयों का प्रतिपादन किया गया है, वे हैं- भगवद्भक्ति, योग, वैष्णव एवं भक्त-महिमा, मनुष्य एवं नारी के धर्मं, पतिव्रता एवं कुलटाओं के लक्षण, अतिथि सेवा, गुरुमहिमा, माता-पिता की महिमा, रोग-विज्ञान, स्वास्थ्य के नियम, औषधों की उपादेयता, वृद्धत्व के न आने के साधन, आयुर्वेद के सोलह आचार्यो एवं उनके ग्रन्थों का विवरण, भक्ष्याभ्रक्ष्य, शकुन अपशकुशन एवं पाप-पुण्य का प्रतिपादन | इनके अतिरिक्त इसमें कई सिद्धमन्त्रों, अनुष्ठानों एवं स्तोत्रों का भी वर्णन है । इस पुराण का मूल उद्देश्य है परमतत्व के रूप में श्रीकृष्ण का चित्रण तथा उनकी स्वरूपभूता शक्ति को राधा के नाम से कथन करना। इसमें वही श्रीकृष्ण महाविष्णु, सदाचार,
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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