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अभिनव कालिदास]
[ अभिनव गुप्त
डॉ० एस० एन० दासगुप्त, २. संस्कृत सुकवि-समीक्षा-आ० बलदेव उपाध्याय, ३. संस्कृत साहित्य का इतिहास-आ० बलदेव उपाध्याय, ४. संस्कृत साहित्य का इतिहास-पी० वरदाचार्य।
अभिनव कालिदास-इनके द्वारा रचित दो चम्पू काव्य उपलब्ध होते हैं'भगवत चम्पू' तथा 'अभिनव भारत चम्पू'। 'भागवत चम्पू' का प्रकाशन गोपाल नारायण कम्पनी, बुक सेलर्स, कालबादेवी, बम्बई से १९२९ ई० में हुआ है, किन्तु द्वितीय ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित है। 'भागवत चम्पू' का आधार 'श्रीमद्भागत' का दशमस्कन्ध है। इसमें छह स्तवक हैं। कवि का समय ११वीं शताब्दी है। वह उत्तरी पेन्नार के किनारे स्थित विद्यानगर के राजा राजशेखर का राजकवि था। राजशेखर का समय ग्यारहवीं शताब्दी है। अभिनवं कालिदास की कविता में नग्न और उत्तान शृङ्गार का बाहुल्य है और संयोगपक्ष के वर्णन में कवि की वृत्ति खूब रमी है। इनके शृङ्गार-वर्णन पर राजदरबार की विलासिता का पूर्ण प्रभाव है तथा पदों में सानुप्रासिक सौन्दर्य एवं यमक की छटा दिखाई पड़ती है। रमणीसरोजरमगीयलोचनामधुराधराश्रयधुराधरापि का । रुचिराचिरांशुरुचिराशयाशयं तरली चकार मुरली विनोदनः ।। भागवत चम्पू ३३५४ । 'अभिनवभारत चम्पू' में 'महाभारत' की कथा संक्षेप में वर्णित है। इसका उल्लेख लेविसराइस केटलॉग ( २४६ ) में है।
आधार ग्रन्थ-१. हिस्ट्री ऑफ क्लासिकल संस्कृत लिटरेचर-कृष्णमाचारियर, २. चम्पूकाव्य का ऐतिहासिक एवं आलोचनात्मक अध्ययन-डॉ० छबिनाथ त्रिपाठी ।
अभिनवगुप्त-दर्शन एवं काव्य शास्त्र के आचार्य । ये काश्मीर-निवासी थे। इनके कथन से ज्ञात होता है कि इनके पूर्वज अन्तर्वेद ( दोआब ) के निवासी थे किन्तु बाद में काश्मीर में आकर बस गए। इनके पिता का नाम नृसिंहगुप्त एवं पितामह का नाम वाराहगुप्त था। इनके पिता का अन्य नाम 'चुखल' और माता का नाम विमला या विमलाकला था। 'अन्तर्वेद्यामात्रिगुप्ताभिधानः प्राप्योत्पत्ति प्राविशत् प्राग्रजन्मा । श्रीकाश्मीरांश्चन्द्रचूड़णवतार-निःसंख्याकैः पावितोपान्त भागान् ॥' परात्रिंशिका विवरण २८० । तस्यान्वये महति कोऽपि वराहगुप्तनामाबभूव भगवान् स्वयमन्तकाले। गीर्वाणसिन्धुलहरीकलिताग्रहम्र्धा-यस्काकरोत् परमनुग्रहमाग्रहेण ॥ तस्यात्मजः चुखुलकेति जने प्रसिद्धश्चन्द्रावदातधिषणो नरसिंहगुप्तः । यं सर्वशास्त्ररसमज्जनशुभ्रचित्तं माहेश्वरी परमतांकुरुते स्मभक्तिः ॥ तन्त्रालोक । अभिनव ने अपने १३ गुरुओं का विवरण प्रस्तुत किया है जिनमें प्रसिद्ध हैं-नरसिंहगुप्त ( ग्रन्थकार के पिता ) वोमनाथ, भूतिराजतनय, इन्दुराज, भूतिराज एवं भट्टतोत । अभिनवगुप्त प्रकाण्ड विद्वान् तथा परम शिवभक्त थे। ये आजीवन ब्रह्मचारी बने रहे। इन्होंने अनेक विषयों पर ४१ ग्रन्थों का प्रणयन किया है जिनमें ११ ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। १. बोधपन्चदशिका-शिवभक्तिविषयक १५ श्लोकों का लघु ग्रन्थ, २. परात्रीशिका-विवरण-तन्त्रशास्त्र का ग्रन्थ ३. मालिनीविजयवात्तिक-'मालिनीविजय तन्त्र' नामक ग्रन्थ का वात्तिक, ४. तन्त्रालोक-तन्त्रशास्त्र का विशाल ग्रन्थ, ५-६. तन्त्रसार तन्त्रवटधानिका