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अभिषेक
[ अभिषेक
तन्त्रसार के ग्रन्थ, ७-८. ध्वन्यालोकलोचन एवं अमिनवभारती-'ध्वन्यालोक' एवं भरत नाट्यशास्त्र की टीका, ९. भगवद्गीतार्थसंग्रह-गीता की व्याख्या, १०. परमार्थसार१०५ श्लोक का शैवागम-ग्रन्थ, ११. ईश्वरप्रत्यभिज्ञाविमशिणी-उत्पलाचार्यकृत ईश्वरप्रत्यभित्रासूत्र की टीका । चार हजार श्लोकों का ग्रन्थ । इनके अन्य अप्रकाशित ग्रन्थों के नाम इस प्रकार हैं-ईश्वरप्रत्यभिज्ञाविवृत्ति-विमर्शिणी, क्रमस्तोत्र, भैरवस्तोत्र, देहस्थदेवताचक्रस्तोत्र, अनुभवनिवेदन, अनुतराष्टिका, परमार्थद्वादशिका, परमार्थचर्चा, महोपदेशविंशतिकम्, तन्त्रोच्चय, घटकपरकुलक विवृति, क्रमकेलि, शिवहष्यांलोचन, पूर्वपञ्चिका, पदार्थप्रवेशनिर्णयटीका प्रकीर्णकविवरण, काव्यकौतुकविवरण, कथामुखतिलकम्, लध्वीप्रक्रिया, वेदवादविवरण, देवीस्तोत्रविवरण, तत्वाध्वप्रकाशिका, शिवशक्त्यविनाभावस्तोत्र, बिम्बप्रतिबिम्बभाव, अनुत्तरतत्त्वविमर्शिणीवृत्ति, नाट्यालोचन, परमार्थसंग्रह, अनुत्तरशतक । अभिनवगुप्तकृत इस विशाल ग्रन्थ-राशि को तीन वर्गों में विभक्त किया जा सकता है–दार्शनिक, साहित्यिक एवं तान्त्रिक । इनका काल-निर्णय अत्यन्त सुगम है। उन्होंने 'ईश्वरप्रत्यभिज्ञा विशिणी' का रचनाकाल कलियुग का ४१५१ लिखा है जो गणनानुसार १०१४-१५ ई० है। इस प्रकार इनकी साहित्यसाधना की अवषि ९८० ई० से लेकर १०२० तक सिद्ध होती है। अभिनवगुप्त उच्चकोटि के कवि, महान् दार्शनिक एवं साहित्य समीक्षक हैं। इन्होंने रस को काव्य में प्रमुख स्थान देकर उसकी महत्ता स्वीकार की है। इनका रसविषयक सिद्धान्त 'अभिव्यक्तिवाद' कहा जाता है जिसके अनुसार श्रोताओं एवं दर्शकों के हृदय में रस के तत्व ( स्थाविभाव ) वासना के रूप में विद्यमान रहते हैं और काव्य के पढ़ने एवं नाटक के देखने से वही वासना अभिव्यक्त या उद्बुद्ध होकर रस के रूप में परिणत हो जाती है। इन्होंने रस को व्यंजना का व्यापार माना है और उसकी स्थिति सामाजिक या दर्शक में ही स्वीकार की है। अभिनवगुप्त का रससिद्धान्त मनोवैज्ञानिक भित्ति पर आधुत है। इन्होंने विभावन व्यापार के द्वारा विभावानुभाव आदि का साधारणीकरण होने का वर्णन किया है तथा रस को काव्य की आत्मा माना है जो ध्वनि के रूप में व्यंजित होता है । अभिनवगुप्त प्रत्यभिज्ञादर्शन के महान् आचार्य हैं।
आधार ग्रन्थ-हिन्दी अभिनवभारती ( १, ३, ६ अध्याय की व्याख्या )व्याख्याकार आ० विश्वेश्वर ।
अभिषेक-यह महाकवि भास विरचित नाटक है। इसका कथानक राम-कथा पर आश्रित है। इसमें ६ अंक हैं और बालि-वध से रामराज्याभिषेक तक की कथा वर्णित है। रामराज्याभिषेक के आधार पर ही इसका नामकरण किया गया है । कवि ने रामचन्द्र के किष्किन्धा पहुंचने, हनुमान् का लंका में जाकर सीता को सान्त्वना देने, नगरी नष्ट करने, जलाने तथा रावण द्वारा राम और लक्ष्मण के कटे हुए मस्तक को छलपूर्वक सीता को दिखाने की घटनाओं को, विशेष रूप से समाविष्ट किया है । इस नाटक में दो अभिषेकों का वर्णन है—सुपीव एवं श्रीराम का। अन्तिम अभिषेक श्रीरामचन्द्र का है और वही नाटक का फल भी है। रामायण की कथा को सजाने