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अभयदेव ]
( १४ )
[ अभिनन्द
तत्र क्वचित्कचिवृद्धैविशेषानस्फुटीकृतान् । निष्टंकषितमस्माभिः क्रियते वृत्तिवातिकम् ॥ पृ० १ चित्रमीमांसा में १२ अलंकारों का विस्तारपूर्वक विवेचन किया गया हैउपमा, उपमेयोपमा, अनन्वय, स्मरण, रूपक, परिणाम, ससन्देह, भ्रान्तिमान्, उल्लेख, अपहनुति, उत्प्रेक्षा एवं अतिशयोक्ति। चित्रमीमांसा की रचना अधूरी है । संभव है इसमें इसी पद्धति पर सभी अलंकारों का विवेचन किया गया हो। विवेचित अलंकारों का विवरण ऐतिहासिक एवं सैद्धान्तिक उभय दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है। दीक्षित ने प्रत्येक अलंकार के विवेचन में पूर्ववर्ती आलंकारिकों के लक्षण एवं उदाहरण में दोषान्वेषण कर उनकी शुद्ध एवं निर्धान्त परिभाषाएं दी हैं। कुवलयानन्द दीक्षित की अलंकारविषयक अत्यन्त लोकप्रिय रचना है जिसमें शताधिक अलंकारों का निरूपण है। इस ग्रन्थ की रचना जयदेवकृत चन्द्रालोक के आधार पर हुई है। [ दे० कुवलयानन्द ] ___ आधार ग्रन्थ-१. भारतीय साहित्य शास्त्र भाग १-आ० बलदेव उपाध्याय, २. हिन्दी कुवलयानन्द-डॉ० भोलाशङ्कर व्यास । ___अभयदेव-(समय १२२१ ई०) ये संस्कृत के जैन कवि हैं, जिन्होंने १९ सर्ग में 'जयन्तविजय' नामक महाकाव्य की रचना की है। इस महाकाव्य में मगधनरेश जयन्त की विजय-गाथा दो सहस्र श्लोकों में वर्णित है।
अभिनन्द (प्रथम)-इन्होंने 'कादम्बरीसार' नामक दस सर्गों का महाकाव्य लिखा है। ये काश्मीरक थे। इनका समय १०वीं शताब्दी है। इनके पिता प्रसिद्ध नैयायिक जयन्त भट्ट थे। 'कादम्बरीसार' में अनुष्टुप् छन्द में 'कादम्बरी' की कथा कही गयी है । इन्होंने 'योगवासिष्ठसार' नामक अन्य ग्रन्थ भी लिखा था। क्षेमेन्द्र ने अभिनन्द के अनुष्टुप् छन्द की प्रशंसा की है। अनुष्टुप्-सततासक्ता साभिनन्दस्य नन्दिनी । विद्याधरस्य वदने लिगुकेव प्रभावभूः ॥ सुवृत्ततिलक [ 'कादम्बरीसार' का प्रकाशन काव्यमाला संख्या ११ में बम्बई से हो चुका है ।
अभिनन्द (द्वितीय)-इन्होंने 'रामचरित' नामक महाकाव्य का प्रणयन किया है। इनका समय नवम शताब्दी का मध्य है । कवि ने अपने आश्रयदाता का नाम श्रीहारवर्ष लिखा है, जिनका समय नवम शताब्दी है-नमः श्रीहारवर्षाय येन हालादनन्तरम् । स्वकोशः कविकोशानामाविर्भावाय संभृतः ।। कवि के पिता का नाम शतानन्द था और वे भी कवि थे। उनके १० श्लोक 'सुभाषितरत्नकोश' में उद्धृत हैं। 'रामचरित' महाकाव्य में किष्किन्धाकाण्ड से लेकर युद्धकाण्ड तक की कथा ३६ सर्गों में वर्णित है। यह ग्रन्थ अधूरा है। इसकी पूर्ति के लिए दो परिशिष्ट अन्त में चार-चार सर्गों के हैं जिनमें प्रथम के रचयिता स्वयं अभिनन्द हैं तथा द्वितीय परिशिष्ट किसी 'कायस्थकुलतिलक' भीम कवि की रचना है। इस महाकाव्य में प्रसाद एवं माधुर्यगुण-युक्त विशुद्ध वैदर्भी शैली का प्रयोग हुआ है । ऋतु तथा प्राकृतिक दृश्यों के वर्णन में कवि की प्रकृत प्रतिभा का निदर्शन हुआ है [ 'रामचरित' का प्रकाशन. १९३० ई० में गायकवाड ओरियण्टल सीरीज से हुआ है ] ।
आधार ग्रन्थ-१. हिस्ट्री ऑफ संस्कृत लिटरेचर-डॉ० एस० के० डे तथा