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अप्पय दीक्षित ]
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संक्षेप नहीं । संहितापाठ को पदपांठ के रूप में परिवर्तित करने के लिए इसमें विशेष नियम दिये गए हैं । (सम्पादक : डॉ० सूर्यकान्त) सामसप्तलक्षण - यह पद्यबद्ध लघुकाव्य ग्रन्थ है, जिसका प्रकाशन महीदास की विवृति के साथ संस्कृत सीरीज, काशी से १९३८ ई० में हुआ है । अथर्ववेदीयग्रन्थ - 'अथर्ववेद' के अनेक अनुक्रमणी ग्रन्थ हैं, जिनमें अथवं का विभाजन, मन्त्र उच्चारण तथा विनियोग संबंधी विचार हैं चरणव्यूह - इसमें वेद के पाँच लक्षण ग्रन्थ उल्लिखित हैं- चतुरध्यायी, प्रातिशाख्य, पञ्चपटलिका, दन्त्योष्ठविधि एवं बृहसत्र्वानुक्रमणी । इनमें से प्रथम दो का विवरण शिक्षाग्रन्थों में है । दे० शिक्षा । १. पञ्चपटलिका — इसमें पाँच पटल या अध्याय हैं तथा अथर्व के काण्डों एवं मन्त्रों का विवरण दिया गया है । इसमें ऋषि और देवता का भी उल्लेख है । २. दन्त्योष्ठ विधि — इसमें अथर्ववेदीय उच्चारण का विशेष विवरण प्राप्त होता है । ३. बृहत्सर्वानुक्रमणी - इसके प्रत्येक काण्ड में सूक्तों के मन्त्र, देवता तथा ऋषि का विवरण है । यह बीस काण्डों में विभक्त है । उपर्युक्त तीनों ग्रन्थों का प्रकाशन दयानन्द महाविद्यालय, लाहौर से हुआ था ।
आधार ग्रन्थ - वैदिक साहित्य और संस्कृति - आ० बलदेव उपाध्याय ।
अप्पय दीक्षित - प्रसिद्ध वैयाकरण, दार्शनिक एवं संस्कृत के सर्वतन्त्र स्वतन्त्र विद्वान् के रूप में प्रतिष्ठित हैं । १०४ ग्रन्थों का प्रणयन किया है । ये दक्षिण भारत के राजा शाहजी के सभापण्डित थे । इनका समय १७वीं शताब्दी का अन्तिम चरण तथा १८वीं शताब्दी का प्रथम चरण है । इनके द्वारा रचित ग्रन्थों की सूची इस प्रकार है - १. अद्वैत वेदान्त विषयक ग्रन्थ - श्री परिमल, सिद्धान्तलेशसंग्रह, वेदान्तनक्षत्रवादावली, मध्वतन्त्रमुखमर्दनम्, न्यायरक्षामणि । कुल छह ग्रन्थ । २. भक्तिविषयक २६ ग्रन्थ - शिखरिणीमाला, शिवतत्त्वविवेक ब्रह्मतर्कस्तव ( लघुविवरण ) आदित्यस्तवरत्नम् इसकी व्याख्या, शिवाद्वैत निर्णय, शिवध्यानपद्धति, पल्चरत्न एवं इसकी व्याख्या, आत्मार्पण, मानसोल्लास, शिवकर्णामृतम्, आनन्दलहरी, चन्द्रिका, शिवमहिमकालिकास्तुति, रत्नत्रय परीक्षा एवं इसकी व्याख्या, अरुणाचलेश्वरस्तुति, अपीतकुचाम्बास्तव, चन्द्रकलास्तव, शिवार्कमणिदीपिका, शिवपूजाविधि, नयमणिमाला एवं इसकी व्याख्या । ३. रामानुजमत विषयक ५ ग्रन्थ - - नयनमयूखमालिका, इसकी व्याख्या, श्री वेदान्तदेशिकविरचित 'यादवाभ्युदय' की व्याख्या, वेदान्तदेशिकविरचित 'पादुकारहस्य' की व्याख्या, वरदराजस्तव । ४. मध्य सिद्धान्तानुसारी २ ग्रन्थ - न्यायरत्नमाला एवं इसकी व्याख्या । ५. व्याकरणसम्बन्धी ग्रन्थ - नक्षत्रवादावली । ६. पूर्वमीमांसाशास्त्रसम्बन्धी २ ग्रन्थ – नक्षत्रवादावली एवं विधिरसायन । ७. अलंकारशास्त्रविषयक ३ ग्रन्थ - - वृत्तिवात्तिक, चित्रमीमांसा एवं कुवलयानन्द । वृत्तिवात्तिक - यह शब्दशक्ति पर रचित लघु रचना है जिसमें केवल दो ही शक्तियों - अभिधा एवं लक्षणा का विवेचन है । लक्षणा के प्रकरण में ही यह ग्रन्थ समाप्त हो जाता है । यह ग्रन्थ अधूरा रह गया है वृत्तयः काव्यरुरणावलंकारप्रबन्वृभिः अभिधा लक्षणा व्यक्तिरिति तिस्रो निरूपिताः ॥
काव्यशास्त्री अप्पयदीक्षित इन्होंने अनेक विषयों पर निवासी तथा तंजौर के