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अनुक्रमणी]
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[अनुक्रमणा
के ऊपर २५ टीकाएं एवं 'दीपिका' के ऊपर १० व्याख्यान प्राप्त होते हैं। इनमें गोवर्धन मिश्र कृत 'न्यायबोधिनी', श्रीकृष्णधूर्जटिदीक्षित-रचित 'सिद्धान्तचन्द्रोदय', चन्द्रसिंह कृत 'पदकृत्य' तथा नीलकण्ठदीक्षित रचित 'नीलकण्ठी' प्रभृति टीकाएं अत्यन्त प्रसिद्ध हैं।
आधार ग्रन्थ-भारतीय दर्शन-आ० बलदेव उपाध्याय ।
अनुक्रमणी-ऐसे ग्रन्थों को अनुक्रमणी कहते हैं, जिनमें वेदों के देवता, ऋषि एवं छन्दों की सूची प्रस्तुत की गयी है। वेदों की रक्षा के लिए कालान्तर में इन ग्रन्थों का निर्माण हुआ है । प्रत्येक वेद की पृथक्-पृथक् अनुक्रमणी है। शौनक और कात्यायन अनुक्रमणी के प्रसिद्ध लेखकों में हैं। शौनक ने 'ऋग्वेद' की रक्षा के निमित्त दस अनुक्रमणियों की रचना की थी, जिनके नाम हैं-'आर्षानुक्रमणी' 'छन्दोनुक्रमणी' 'देवतानु. क्रमणी', 'अनुवाक्-अनुक्रमणी', 'सूक्तानुक्रमगी', 'ऋग्विधान', 'पादविधान', 'बृहदेवता' 'प्रातिशाख्य' एवं 'शौनकस्मृति' । इनमें से प्रथम पांच ग्रन्थों में 'ऋग्वेद' के सभी मण्डलों, अनुवाकों और सूक्तों की संख्या, नाम एवं अन्यान्य विषयों के अतिरिक्त दसों मण्डलों के देवता, ऋषि तथा छन्दों का विवरण दिया गया है। सभी ग्रन्थ पद्यबद्ध हैं और इनकी रचना अनुष्टुप् छन्द में हुई है। 'ऋग्विधान' में विशेष कार्य की सिद्धि के लिए 'ऋग्वेद' के मन्त्रों का प्रयोग है। बृहदेवता-यह अनुक्रमणियों में सर्वश्रेष्ठ है। इसमें बारह सौ पद्यों में ऋग्वेदीय देवताओं का विस्तारपूर्वक विवेचन तथा तद्विषयक सनस्त समस्याओं का समाधान है। इसमें आठ अन्याय हैं तथा प्रत्येक अध्याय में पांच पद्यों के वर्ग हैं । प्रथम अध्याय में १०५ पद्य भूमिका स्वरूप हैं जिनमें देवता के स्वरूप एवं स्थान का विवरण है। द्वितीय अध्याय में ऋग्वेदीय प्रत्येक सूक्त के देवता का विवरण तथा सूक्त संबंधी आख्यानों का वर्णन है। इसका समय विक्रमपूर्व अष्टम शतक माना जाता है। [हिन्दी अनुवाद के साथ चौखम्बा विद्याभवन से प्रकाशित, अनु० श्री रामकुमार राय] सर्वानुक्रमणी-इसके रचयिता कात्यायन हैं। इसमें 'ऋग्वेद' की ऋचाओं की संख्या, सूक्त के ऋषि का नाम और गोत्र, मन्त्रों के देवता तथा छन्दों का उल्लेख है। इस पर बृहद्देवता' का अधिक प्रभाव है। शुक्लयजुः सर्वानुक्रमसूत्रइसके रचयिता कात्यायन हैं। इसमें पाँच अध्याय हैं जिनमें 'माध्यन्दिन संहिता' के देवता, ऋषि एवं छन्दों का विवरण है। इसमे छन्दों का विस्तारपूर्वक वर्णन तथा याग-विधान के नियमों के साथ ही साथ अनुष्ठानों का भी वर्णन है। सामवेदीय अनुक्रमणी-'सामवेद' से सम्बद्ध अनुक्रमणी ग्रन्थों की संख्या अधिक है । कल्पानुपदसूत्रयह दो प्रपाठक में विभक्त है तथा प्रत्येक प्रपाठक में १२ पटल हैं। उपग्रन्थसूत्रयह चार प्रपाठकों में विभक्त है। सायण के अनुसार इसके रचयिता कात्यायन हैं। अनुपदसूत्र-इसमें 'पन्चविंशब्राह्मण' की संक्षिप्त व्याख्या है। इसमें दस प्रपाठक हैं। निदानसूत्र-इसमें दस प्रपाठक हैं। इसके लेखक पतञ्जलि हैं । उपनिदानसूत्र-इसमें दो प्रपाठक हैं तथा छन्दों का सामान्य स्वरूप वर्णित है। पन्चविधान—यह दो प्रपाठकों में विभाजित है। लघुऋक्तन्त्र संग्रह-यह स्वतन्त्र ग्रन्य है, ऋक्तन्त्र का