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कुमारदास]
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[कुमारदास
१. श्री अत्रिदेव विद्यालंकार कृत हिन्दी अनुवाद, काशी से प्रकाशित । २. आचार्य जगन्नाथ पाठक कृत अनुवाद-मित्र प्रकाशन, इलाहाबाद । ३. चौखम्बा प्रकाशन का संस्करण ( हिन्दी अनुवाद)। . कुमारदास-ये 'जानकीहरण' नामक महाकाव्य के प्रणेता हैं। इनके सम्बन्ध में निम्नांकित तथ्य प्राप्त हैं-(क) कुमारदास की जन्मभूमि सिंहल द्वीप थी। (ख) यह सिंहल के राजा नहीं थे। (ग) सिंहल के इतिहास में यदि किसी राजा का नाम कवि के नाम से मिलता-जुलता था तो वह कुमार धातुसेन का था। परन्तु वे कुमारदास से पृथक् व्यक्ति थे। (घ) कवि के पिता का नाम मानित और दो मामाओं का नाम मेघ और अग्रबोधि था । उन्हीं की सहायता से कुमारदास ने अपने महाकाव्य की रचना की थी। (3) कुमारदास का समय सन् ६२० ई. के लगभग है । ___'जानकीहरण' २० सर्गों का विशाल काव्य है जिसमें रामजन्म से लेकर रामराज्याभिषेक तक की कथा दी गयी है। उनकी प्रशस्ति में सोड्ल एवं राजशेखर ने अपने उतार व्यक्त किये हैं।
बभूवुरन्योऽपि कुमारदासभासादयो हन्त कवीन्दवस्ते । यदीयगोभिः कृतिनां द्रवन्ति चेतांसि चन्द्रोपलनिर्मितानि ।। सोड्ढल जानकीहरणं कतुं रघुवंशे स्थिते सति ।
कविः कुमारदासश्च रावणश्च यदि क्षमो॥राजशेखर, सूक्तिमुक्तावली ४८६ कुमारदास कालिदासोत्तर (चमत्कारप्रधान महाकाव्यों की) युग की उपलब्धि हैं। उनके 'जानकीहरण' पर 'रघुवंश' का प्रभाव होते हुए भी अलंकृत काव्यों का पर्याप्त ऋण है । उन्होंने भारवि के पथ का अनुसरण करते हुए नगर, नायक-नायिका, उद्यान-क्रीड़ा, जल-क्रीड़ा, रतोत्सव, पानगोष्ठी, सचिवमन्त्रणा, दूतसम्प्रेषण तथा युद्ध का परम्परागत वर्णन करते हुए भी अनुचित ढंग से उनका विस्तार नहीं किया है और इन्हें कथा का अंग बनाया है। अनेक स्वाभाविक वर्णनों के होते हुए भी चित्रकाव्य के मोह ने कुमारदास को महाकवि होने में व्याघात उपस्थित कर दिया। अलङ्कारों के प्रति उप आकर्षण होने के कारण प्रकृत काव्य का रूप 'जानकीहरण' में उपस्थित न हो सका। भारवि द्वारा प्रवत्तित माग को गति देते हुए कुमारदास ने एकाक्षर एवं धक्षर श्लोकों का प्रणयन किया । यमकों के मायाजाल में पड़ कर उनकी कला-प्रवणता अवरुद्ध हो गयी और पाण्डित्य-प्रदर्शन के लिए उन्होंने भी पाद यमक, आदि यमक, आद्यन्त यमक, निरन्तरानुप्रास, यक्षरानुप्रास, अर्धप्रतिलोम, गोमूत्रिका, मुरजबन्ध एवं सर्वतोभद्र आदि की रचनाएं कीं। इन वर्णनों के द्वारा रस-सिद्धि एवं कवि की कल्पना. प्रवणता विजड़ित हो जाती है। एक ओर कुमारदास की कविता कलात्मक काव्य की ऊँचाई का संस्पर्श करती है तो दूसरी ओर परम्परागत कविता के शिल्प एवं भावविधान को भग्न कर उससे आगे बढ़ने का प्रयास नहीं करती।
आधारग्रन्थ-१. जानकीहरणम्-(हिन्दी अनुवाद ) अनु०.६० अजमोहन व्यास। २. संस्कृत सुकवि-समीक्षा-पं० बलदेव उपाध्याय ।