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________________ कुमारभागंवीय ] ( १४१ ) [ कुमारसंभव कुमार भार्गवीय - इस चम्पूकाव्य के रचयिता भानुदत्त हैं। इनका समय सत्रहवीं शताब्दी का अन्तिम चरण एवं अठारहवीं शताब्दी का प्रथम भाग है । कवि के पिता का नाम गणपति था । यह ग्रन्थ बारह उच्छ्वासों में विभक्त है और इसमें कुमार कार्तिकेय के जन्म से लेकर तारकासुर के वध तक की घटना का वर्णन है । प्रकृति का मनोरम चित्र, भावानुरूप भाषा का गठन तथा अनुप्रास, यमक, उपमा एवं उत्प्रेक्षा की छटा इस ग्रन्थ की निजी विशिष्टता है । यह चम्पू अभी तक अप्रकाशित है और इसका विवरण इण्डिया ऑफिस कैटलाग, ४०४०।४०८ पृ० १५४० में प्राप्त होता है । कुमार की युद्ध-यात्रा का वर्णन देखिये करेण कोदण्डतां विधृत्य मातुर्नमस्कृत्य पदारविन्दम् । इत्थं स नाथं वसुधाधिनाथं जेतुं भवानीतनयः प्रतस्थे । १०।१ आधारग्रन्थ – चम्पूकाव्य का आलोचनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन – डॉ० छविनाथ त्रिपाठी । कुमारसंभव - यह महाकवि कालिदास विरचित महाकाव्य है जिसमें शिवपावती के विवाह का वर्णन है । विद्वानों के अनुसार इसकी रचना 'रघुवंश' के पूर्व हुई थी । सम्प्रति 'कुमारसंभव' के दो रूप प्राप्त होते हैं । सम्पूर्ण 'कुमारसंभव' १७ सर्गों में है जिसमें शिव-पार्वती के पराक्रमशाली पुत्र कार्तिकेय के जन्म एवं उनके द्वारा भयंकर असुर तारक के वध का वर्णन किया गया है। इसका दूसरा रूप अष्टसर्गात्मक है । विद्वानों का अनुमान है कि मूल 'कुमारसंभव' आठ सर्गों में ही रचा गया था और शेष सर्ग किसी अल्प प्रतिभाशाली कवि द्वारा जोड़े गए हैं । इस पर मल्लिनाथ की टीका aa ai तक ही प्राप्त होती है तथा प्राचीन आलंकारिक ग्रन्थों में आठवें सगं के उदाहरण दिए गए हैं। किंवदन्ती ऐसी है कि आठवें सर्ग में महाकवि ने शिव-पार्वती के संभोग का बड़ा ही नम्र चित्र उपस्थित किया था जिससे क्रुद्ध होकर पार्वती ने उन्हें शाप दिया कि तुम्हें कुष्ट रोग हो जाय और इसी कारण यह काव्य अधूरा रह गया । आठवें सगं की कथावस्तु से भी पुस्तक के नामकरण की सिद्धि हो जाती है क्योंकि शिव-पार्वती के संभोग वर्णन से कुमार के भावी जन्म की घटना की सूचना मिल जाती है । इसके प्रथम सगं में शिव के निवास स्थान हिमालय का प्रोज्ज्वल वर्णन है । हिमालय का मेना से विवाह एवं पार्वती का जन्म, पार्वती का रूप चित्रण, नारद द्वारा शिव-पार्वती के विवाह की चर्चा तथा पार्वती द्वारा शिव की आराधना आदि घटनाएँ वर्णित हैं । दूसरे सगं में तारकासुर से पीड़ित देवगण ब्रह्मा के पास जाते हैं तथा ब्रह्मा उन्हें उक्त राक्षस के संहार का उपाय बताते हैं । वे कहते हैं कि शिव के वयं से सेनानी का जन्म हो तो वे तारकासुर का वध कर देवताओं के उत्पीड़न को नष्ट कर सकते हैं । तृतीय सर्ग में इन्द्र के आदेश से काम शिव के आश्रम में जाता है और वह वसंत ऋतु का प्रभाव चारों ओर दिखाता है । उमा सखियों के साथ आती है और उसी समय कामदेव अपना बाण शिव पर छोड़ता है। शिव की समाधि भंग होती है और उनके मन में अद्भुत विकार दृष्टिगोचर होने से क्रोध उत्पन्न होता है ।
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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