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________________ कीय ए.बी.] ( १३९ ) [कुट्टनीमतम् का अर्थान्तरन्यास-श्री उमेशचन्द्र रस्तोगी । ४. संस्कृत कवि-दर्शन-डॉ० भोलाशपुर व्यास। कीथ ए० बी० -महापण्डित कीथ का पूरा नाम आर्थर बेरिडोल कीथ था। ये प्रसिद्ध संस्कृत प्रेमी आंग्ल विद्वान् थे। इनका जन्म १८७९ ई० में ब्रिटेन के नेडाबार नामक प्रान्त में हुआ था। इनकी शिक्षा एडिनबरा एवं ऑक्सफोर्ड में हुई थी। ये एडिनबरा विश्वविद्यालय में संस्कृत एवं भाषाविज्ञान के अध्यापक नियुक्त हुए जिस पद पर ये तीस वर्षों तक रहे । इनका निधन १९४४ ई० में हुआ । इन्होंने संस्कृत साहित्य के सम्बन्ध में मौलिक अनुसन्धान किया। इनका 'संस्कृत साहित्य का इतिहास' अपने विषय का सर्वोच्च एवं सर्वाधिक प्रामाणिक ग्रन्थ है। इन्होंने संस्कृत साहित्य एवं दर्शन के अतिरिक्त राजनीतिशास्त्र पर भी कई प्रामाणिक ग्रन्थों की रचना की है जिनमें अधिकांश का सम्बन्ध भारत से है। ये मैक्डोनल के शिष्य थे। इनके ग्रन्थों की तालिका इस प्रकार है १. ऋग्वेद के ऐतरेय एवं कौषीतकी ब्राह्मण का दस खण्डों में अंग्रेजी अनुवाद, १९२०; २. शाखायन आरण्यक का अंग्रेजी अनुवाद, १९२२; ३. कृष्णयजुर्वेद का दो भागों में अंग्रेजी अनुवाद, १९२४; ४. हिस्ट्री ऑफ संस्कृत लिटरेचर, १९२८%) ५. वैदिक इण्डेक्स ( मैक्डोनल के सहयोग से); ६. रेलिजन ऐण्ड फिलासफी ऑफ वेद ऐण्ड उपनिषद्स ७. बुद्धिस्ट फिलासफी इन इण्डिया ऐण्ड सीलोन; ८. संस्कृत ड्रामा । - कुट्टनीमतम्- इसके रचयिता दामोदर गुप्त हैं। 'राजतरंगिणी' तथा स्वयं इस अन्य की पुष्पिका से ज्ञात होता है कि ये काश्मीर नरेश जयापीड़ (७७९-८१३ ई० ) के प्रधान अमात्य थे । दामोदरगुप्त की यह रचना तत्कालीन समाज के एक वर्गविशेष (कुट्टनी) पर व्यंग्य है। इसमें लेखक ने युग की दुर्बलता को अपनी पैनी दृष्टि से देखकर उसकी प्रतिक्रिया अपने ग्रन्थ में व्यक्त की थी तथा उसके सुधार एवं परिष्कार का प्रयास किया था। 'कुट्टनीमतम्' भारतीय वेश्यावृत्ति के सम्बन्ध में रचित ग्रन्थ है। इसमें एक युवती वेश्या को, कृत्रिम ढंग से प्रेम का प्रदर्शन करते हुए तथा चाटुकारिता की समस्त कलाओं का प्रयोग कर, धन कमाने की शिक्षा दी गयी है। कवि ने कामदेव की बन्दना से पुस्तक का प्रारम्भ किया है___स जयति संकल्पभवो रतिमुखशतपत्रचुम्बनभ्रमरः । ___ यस्यानुरक्तललनानयनान्तविलोकितं वसति ।। कवि ने विकराला नामक कुट्टनी के रूप का बड़ा ही सजीव चित्रण किया है तथा उसकी अभव्य आकृति को प्रस्तुत करने में अपनी चित्रांकनकला को शब्दों में रूपायित किया है । इसकी रचना आर्या छन्द में हुई है जिसमें कुल १०५९ आर्याएं हैं। इसकी शैली प्रसादमयी तथा भाषा प्रवाहपूर्ण है। यत्र-तत्र श्लेष का मनोरम प्रयोग है और उपमाएं नवीन तथा चुभती हुई हैं। जैसे चुम्बक से वेश्याओं की उपमा परमार्थकठोरा अपि विषयगतं लोहकं मनुष्यं च । चुम्बकपाषाणशिला रूपाजीवाश्च कर्षन्ति ॥ आर्या० २०० 'कुट्टनीमतम्' के तीन हिन्दी अनुवाद उपलब्ध हैं
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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