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________________ किरातार्जुनीयम] (१५८) [किरातार्जुनीयम् और उनकी तपस्या की प्रशंसा करते हैं। उनसे तपश्चरण का कारण पूछते हैं शिव की आराधना का आदेश देकर अन्तर्धान हो जाते हैं। __द्वादश सग-अर्जुन प्रसन्न चित होकर शिव की तपस्या में लीन हो जाते हैं। तपस्वी लोग उनकी साधना से व्याकुल होकर शिवजी से जाकर उनके सम्बन्ध में कहते है। शिव उन्हें विष्णु का अंशावतार बतलाते हैं। अर्जुन को देवताओं का कार्यसाधक जानकर मूक नामक दानव शूकर का रूप धारण कर उन्हें मारने के लिए आता है पर किरातवेशधारी शिव एवं उनके गण उनकी रक्षा करते हैं। त्रयोदश सर्ग-एक वराह अर्जुन के पास आता है और उसे लक्ष्य कर शिव एवं अर्जुन दोनों बाण मारते हैं। शिव का किरातवेशधारी अनुचर आकर कहता है कि शूकर मेरे बाण से मरा है, तुम्हारे बाण से नहीं। चतुदर्श सग-अजुन एवं किरातवेशधारी शिव में युद्ध । पञ्चदश सर्ग-दोनों का भयंकर युद्ध । षष्ठदश सर्ग-शिव को देखकर अर्जुन के मन में तरह-तरह का सन्देह उत्पन्न होना एवं दोनों का मवयुद्ध।। सप्तदश सर्ग-इसमें भी युद्ध का वर्णन है। अष्टदश सर्ग-अर्जुन के युद्ध-कौशल से शिव प्रसन्न होते हैं और अपना रूप प्रकट कर देते हैं । अर्जुन उनकी प्रार्थना करते हैं तथा शिव उन्हें पाशुपतास्त्र प्रदान करते हैं। मनोरथपूर्ण हो जाने पर अर्जुन युधिष्ठिर के पास चले जाते हैं। 'किरातार्जुनीय' महाकाव्य का प्रारम्भ 'श्रीः' शब्द से होता है और समाप्ति 'लक्ष्मी' शब्द के साथ होती है । इसके प्रत्येक सग के अन्त में 'लक्ष्मी' शब्द प्रयुक्त है। कवि ने अल्प कथानक को इसमें महाकाव्य का रूप दिया है। कलावादी भारवि ने सुन्दर एवं आकर्षक संवाद, काल्पनिक चित्र तथा रमणीय वर्णन के द्वारा इसके आधार फलक को विस्तृत कर दिया है। चतुर्थ एवं पन्चम सर्ग के शरद एवं हिमालय-वर्णन तषा सप्तम, अष्टम, नवम एवं दशम सर्ग में अप्सराबों का विलास एवं अन्य शृंगारिक चेष्टाएँ मुक्तक काव्य की भांति हैं। वास्तव में इन सों में कथासूत्र टूट गया है और ये स्वतन्त्र प्रसंग के रूप में पुस्तक में समाविष्ट किये गए से प्रतीत होते हैं। ग्यारहवें सर्ग में पुनः कयासूत्र नियोजित होता है और अन्त तक अत्यन्त मन्दगति से चलता है। इसके नायक अर्जुन धीरोदात्त है तथा प्रधानरस वीर है। अप्सराओं का विहार श्रृंगाररस है जो अंगी रूप में प्रस्तुत किया गया है। महाकाव्यों की परिभाषा के अनुसार इसमें सन्ध्या, सूर्य, इन्दु, रजनी आदि का वर्णन है तथा वस्तुव्यंजना के रूप में जलक्रीड़ा, सुरत आदि का समावेश किया गया है। कवि ने सम्पूर्ण १५वें सर्ग का वर्णन चित्रकाव्य के रूप में किया है। 'किरातार्जुनीयम्' संस्कृत महाकाव्यों की परम्परा में कलात्मक शैली का प्रौढ़ ग्रन्थ है। इस पर महिनाथ ने संस्कृत में टीका लिखी है। ___ आधारग्रन्थ-१. किरातार्जुनीयम्-(संस्कृत-हिन्दी टीका) चौखम्बा प्रकाशन । २. किरावाजुनीयम्-(हिन्दी अनुवाद)-अनुवादक रामप्रताप शास्त्री। ३. भारवि
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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