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अमरसेन को राजपद प्रदान कर शूरसेन दीक्षित हो गए। अमरसेन ने सुदीर्घ काल तक राज्य किया और अंतिम वय में चारित्र की आराधना कर स्वर्ग प्राप्त किया। स्वर्ग से च्यव कर मनुष्य भव धारण कर वह सिद्ध होगा। वयरसेन पंचम भव में सिद्धि प्राप्त करेगा।
-मतिनन्दगणि (16वीं शती) अमितगति (आचार्य)
आचार्य अमितगति दिगम्बर जैन परम्परा के एक उच्चकोटि के विद्वान और श्रुतसम्पन्न आचार्य थे। उनके गुरु का नाम माधवसेन था। मुनि-जीवन की भूमिका में प्रवेश के बाद अमितगति ने जैन-जैनेतर दर्शनों का तलस्पर्शी अध्ययन पूर्ण किया। अध्ययन की परिसमाप्ति पर वे साहित्य सृजन की दिशा में गतिमान हुए। उन्होंने कई कालजयी ग्रन्थों की रचना की। सुभाषित रत्न संदोह, धर्म परीक्षा, पंच संग्रह, उपासकाचार, भावना द्वात्रिंशिका, आराधना, तत्वभावना और योगसार उनके द्वारा रचित ग्रन्थ हैं।
आचार्य अमितगति नाम के दो आचार्य जैन परम्परा में हुए हैं। प्रस्तुत अमितगति द्वितीय हैं। कुछ विद्वान योगसार नामक ग्रन्थ को अमितगति प्रथम की रचना मानते हैं। आचार्य अमितगति का समय वी.नि. की 16वीं शती माना जाता है।
-आराधना प्रशस्ति / पंचसंग्रह प्रशस्ति अमृतचन्द्र (आचार्य)
दिगम्बर परम्परा के एक सुप्रसिद्ध साहित्यकार आचार्य। अपने जीवन काल में उन्होंने कई ग्रन्थों पर टीकाओं की रचना की तथा कई स्वतंत्र ग्रन्थों का प्रणयन भी किया। उनके रचित और टीकाकृत ग्रन्थों की नामावली इस प्रकार है-पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, तत्त्वसार, समयसार टीका, समयसार कलश, प्रवचनसार टीका, पञ्चास्तिकाय टीका आदि। ___ आचार्य श्री की उत्कृष्ट विद्वत्ता और विशद व सूक्ष्म चिन्तन के दर्शन प्रस्तुत ग्रन्थों में स्पष्ट रूप से होते हैं। . आचार्य अमृतचन्द्र वी.नि. की पन्द्रहवीं शती के उत्तरार्द्ध के विद्वान मुनिराज थे। अमोघवर्ष (राजा)
दक्षिणापथ के मान्यखेट नगर का राष्ट्रकूटवंशीय एक महाराजाधिराज । अमोघवर्ष वी.नि. की चौदहवीं सदी का शक्तिशाली और प्रतापी नरेश था। प्राप्त उल्लेखों के अनुसार उसके राज्य में तीन बार विद्रोहाग्नि भड़की, जिसे उसने अपने शौर्य से शान्त कर दिया।
अमोघवर्ष आत्मोन्मुखी राजा था। जीवन के पश्चिम प्रहर में उसने स्वेच्छा से राजपाट का त्याग कर दिया और अपना अधिकांश समय जैन आचार्यों की सेवा-आराधना में व्यतीत किया। वह एक विद्वान राजा था। उसने कुछ ग्रन्थों का भी प्रणयन किया था। 'कविराज मार्गालंकार' और 'रत्नमालिका', ये दो ग्रन्थ उसके लिखे हुए हैं।
वी.नि. 1402 में अमोघवर्ष ने स्वेच्छा से राज्य त्याग कर अपना समय जैनाचार्यों की संगति और साहित्य साधना में अर्पित किया था। अमोलक ऋषि जी (आचार्य)
स्थानकवासी ऋषि सम्प्रदाय के एक तेजस्वी और आगमोद्धारक आचार्य। ...32 00
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