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प्राप्त करने का रहस्य पूछा तो वयरसेन ने सरलमन से मुद्रा प्राप्ति का रहस्य बता दिया। गणिका ने गणित बैठाया कि क्यों न वयरसेन को वमन कराके एक साथ बहुत सी स्वर्णमुद्राएं प्राप्त कर ली जाएं। अपने गणित के अनुसार उसने वयरसेन को वमन की औषधि दे दी। वयरसेन ने वमन किया तो वमन में आम की गठली निकली। उसी दिन से वयर के मुख से प्रकट होने वाली मद्राएं प्रकट होनी बन्द हो गई। धन की प्यासी गणिका ने वयरसेन को अपने घर से निकाल दिया।
वयरसेन यत्र-तत्र भटकते हुए एक वन में पहुंचा। उसका पुण्य उदय में आया और उसे तीन अलौकिक वस्तुएं प्राप्त हो गईं। प्रथम-एक कंथा, जिसे झटकने से उसमें से स्वर्णमुद्राएं बरसती थीं, दूसरा-एक लकुट था, जो आदेश देने पर बड़े से बड़े पराक्रमी शत्रु को परास्त करने में सक्षम था, और तीसरी-उड़नखटाऊं थीं, जिन्हें धारण करके इच्छित स्थान पर पहुंचा जा सकता था। इन वस्तुओं को प्राप्त कर वयरसेन पुनः गणिका के पास पहुंचा। उड़नपादुकाओं का रहस्य पाकर गणिका बड़ी प्रसन्न हुई और उन्हें हथियाने का षड्यंत्र रचने लगी। एक दिन गणिका ने वयरसेन से यक्षद्वीप में यक्षमंदिर में पूजा करने का आग्रह किया। वयरसेन उड़नपादुकाओं के द्वारा गणिका को यक्षद्वीप ले गया। वहां पर जैसे ही पादुकाएं यक्षालय के द्वार पर निकालकर वयरसेन अन्दर घुसा, वैसे ही गणिका पादुकाएं पहनकर अपने नगर में आ गई। वयरसेन चारों ओर से समुद्र से घिरे उस द्वीप पर एकाकी रह गया। गणिका के विश्वासघात पर उसे बड़ा क्रोध आया, पर वह कर ही क्या सकता था। आखिर एक विद्याधर की कृपा से वह उस द्वीप से मुक्त हुआ। साथ ही उसे उस द्वीप से दो पुष्प भी मिले, जो दिव्य थे। उनमें से एक पुष्प को सूंघने से मनुष्य गधा बन जाता था और दूसरे को सूंघने से अपने मूल रूप में लौट आता था। उन फूलों को लेकर वयरसेन कंचनपुर पहुंचा। गणिका के घर गया तो गणिका सहम गई। उसने बात बनाते हुए कहा, वयर! जैसे ही तुम यक्षायतन के अन्दर गए, वैसे ही वहां एक चोर आ गया और तुम्हारी पादुकाएं पहनकर मुझे उठाकर आकाश में उड़ गया। ___ वयरसेन ने अपने मनोभावों को छिपाते हुए गणिका पर प्रेम प्रकट किया और उससे कहा, इस बार मुझे एक अद्भुत फूल प्राप्त हुआ है, जिसे सूंघने मात्र से नारी अक्षत-यौवना बन जाती है। गणिका ने मुग्ध बनकर उस फूल को सूंघने का आग्रह किया। वयरसेन ने गणिका को फूल सुंघाकर गर्दभी बना दिया। फिर उसने लकुट को आदेश दिया कि वह गर्दभी की पिटाई करे। वैसा ही हुआ। गर्दभी गली-बाजारों में भागने लगी। लकुट निर्ममता से उसे मारता रहा। आखिर गणिका की मां ने राजा से रक्षा की गुहार लगाई। राजा ने वयरसेन को बन्दी बनाने के लिए राजपुरुष भेजे। पर लकुट की प्रचण्ड मार के समक्ष राजपुरुष टिक नहीं पाए और उलटे कदमों से भागे। राजा अमरसेन स्वयं वयरसेन से निपटने के लिए चला। इस प्रकार दोनों भाइयों का मिलन हुआ। वयरसेन का क्रोध भ्रातृदर्शन के आनन्द के प्रवाह में बह गया। उसने दूसरा पुष्प सुंघाकर गणिका को उसके मूल रूप में लौटा दिया और उसके विश्वासघात की कथा सभी के समक्ष प्रकट की, जिसे सुनकर सभी लोग गणिका को धिक्कारने लगे। ___अमर और वयर सुखपूर्वक राजसुख का उपभोग करते हुए समय बिताने लगे। एक बार माता और पिता की स्मृति ने उन्हें व्याकुल बना दिया तो उन्होंने एक दूत हस्तिनापुर भेजकर पिता से पूछवाया कि उसने किस अपराध के बदले में अपने पुत्रों के वध का आदेश दिया था। वर्षों से पुत्र-विरह की अग्नि में जल रहे राजा शूरसेन ने जब यह जाना कि उसके पुत्र जीवित हैं तो उसके आनन्द का पारावार न रहा। वह रानी विजया और राजपरिवार सहित कंचनपुर आया। पिता-माता और पुत्रों का मिलन हुआ। राजपरिवार के सुख के दिन लौट आए।
जैन चरित्र कोश ...
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