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के पितामह । सर्वार्थ भगवान पार्श्वनाथ की धर्म परम्परा के श्रावक थे और शील-सदाचार सम्पन्न जीवन जीते थे।
सर्वार्थ के दो पुत्र हुए-सिद्धार्थ और सुपार्श्व। वैशाली नरेश चेटक की बहन त्रिशला से सिद्धार्थ का पाणिग्रहण हुआ। सिद्धार्थ और त्रिशला से ही जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर जैसे धर्म प्रवर्तक और युगान्तकारी परम पुरुष का जन्म हुआ था। (क) सहदेव
एक काष्ठ शिल्पी का पुत्र, जिसने पिता से काष्ठशिल्प कला पूरे मनोयोग से सीखी और समय आने पर वह अपने पिता से भी श्रेष्ठ कलाकृतियां बनाने में निपुण बन गया। सहदेव ने पिता से कला तो सीखी, पर शुरू-शुरू में उसने उस कला का उपयोग नहीं किया। उसमें आलस्य का महादुर्गुण था। पिता और अग्रज कमाते थे, उनकी कमाई पर ही वह पलता था। उसके जिम्मे इतना ही काम था कि वह खेत पर भाई का भोजन पहुंचाए। पर इस कार्य में भी उसका आलस्य बाधा बनता और वह कभी भी समय पर भोजन नहीं पहुंचाता। इससे भाई और पिता ने नाराज होकर उसे घर से निकाल दिया। ____ अलक्षित पथ पर बढ़ते हुए सहदेव ने जंगल में पड़ी एक अस्थि को चावलों के रूप में तराशा। उसके चावलों की कलाकारी देखकर पद्मपुर-वासी प्रेमशंकर काष्ठशिल्पी ने अपनी पुत्री गुणवती का विवाह उसके साथ कर दिया। अपने ही पास उसे एक मकान रहने को दे दिया। बिना परिश्रम से ही सहदेव को पत्नी और घर मिल गए तो उसकी आलस्य वृत्ति पुनः जाग गई। वह श्वसुर की कमाई पर उदरपोषण करने लगा। छह मास बीत गए। आखिर श्वसुर ने अपनी पुत्री से सहदेव को कर्त्तव्य के प्रति जागरूक बनने के लिए कहाया। गुणवती ने अपने वाक् चातुर्य से सहदेव को श्रम के लिए प्रेरित किया। पत्नी की प्रेरणा से सहदेव के भीतर प्रसुप्त कर्त्तव्य बोध जागृत हो गया। उसने जंगल में दूर-दूर तक भटककर एक चन्दन के वृक्ष की खोज की। कठिन और सतत श्रम से उसने एक पंलग तैयार किया। पलंग के चारों पायों पर उसने चार पुतलियां बनाईं। उसकी एकनिष्ठ श्रम साधना में एक योगी की साधना ध्वनित बन गई थी। उसकी श्रम निष्ठा से प्रभावित बनकर एक देव ने उसे वरदान दिया कि तुम्हारे द्वारा निर्मित वस्तुएं दिव्य शक्तियों से अधिष्ठित होंगी।
सहदेव का पलंग तैयार हो गया। उसने बेचने के लिए पलंग को बाजार में रखा। पर उसकी कीमत सुनकर कोई भी व्यक्ति उसे खरीदने की सामर्थ्य नहीं जुटा पाया। सहदेव ने पलंग की आंशिक कीमत एक सहस्र स्वर्णमुद्राएं रखी थी। उसका कथन था कि पलंग का पूरा मूल्य चार दिनों में स्वयं पलंग ही बताएगा। राजा का यह नियम था कि जो वस्तु कोई न खरीदे उसे वह खरीदता था। संध्या समय राजा ने एक सहस्र स्वर्णमुद्राएं प्रदान कर सहदेव का पलंग खरीद लिया। रात्रि में राजा उसी पलंग पर सोया। निरन्तर चार रातों में एक-एक कर चारों पुतलियों ने ऐसे कर्तव्य किए कि राजा अनेक कष्टों से बच गया। नगर में आतंक फैलाने वाले चोरों को एक पुतली ने मार डाला। दो पुतलियों ने अलग-अलग दुर्घटनाओं से राजकुमार के प्राणों की रक्षा की और चतुर्थ पुतली ने राज्य को आदमखोर सिंह से रक्षित किया। इससे राजा चमत्कृत हो गया। सहदेव को आमंत्रित करके राजा ने उसे अपार धन राशि प्रदान की।
राजा ने सहदेव को अपना मित्र मानकर अपने पास रख लिया। राजा की विशेष उत्सुकता पर सहदेव ने एक काष्ठ अश्व बनाया जो आकाश में उड़ सकता था। उस अश्व पर आरूढ़ होकर राजकुमार ने दूर देशों की यात्रा की और कुसुमपुर की राजकुमारी से पाणिग्रहण भी किया। राजा सहदेव की कला पर मुग्ध था। उसने अपनी पुत्री का विवाह उससे कर दिया और पर्याप्त दहेज प्रदान किया। कई वर्षों तक सहदेव पद्मपुर ... 632
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