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में रहने के बाद अपनी दोनों पत्नियों और अपार ऐश्वर्य के साथ अपने नगर में आया। माता, पिता और भाई सहदेव को इस अवस्था में देखकर गद्गद बन गए।
जीवन के उत्तरार्ध पक्ष में सहदेव ने अपनी दोनों पत्नियों के साथ संयम की दीक्षा ली और तीनों ही आयुष्य पूर्ण कर स्वर्ग गति में गए। (ख) सहदेव
महाराज पाण्डु की रानी माद्री का अंगजात और पांचों पाण्डवों में पंचम। (देखिए-नकुल) (क) सहदेवी
हस्तिनापुर नरेश महाराज अश्वसेन की रानी और चतुर्थ चक्रवर्ती सनत्कुमार की माता। (ख) सहदेवी
(देखिए-सुकोशल) सहस्रकला
मोटपल्ली नगर के एक धनी श्रेष्ठी की पुत्री। (देखिए-उत्तमकुमार) सहस्रमल्ल
कौशाम्बी नगरी का एक वणिक्-पुत्र जो अत्यंत दुर्दान्त और दुःसाहसी था। बचपन से ही दुःसंगति के कारण वह चौर्यकर्म में लिप्त बन गया और युवा होते-होते एक नामी चोर बन गया। वह वेश-परिवर्तन की कला में निष्णात था। विभिन्न वेश बनाकर वह विभिन्न लोगों को ठगता। सेंध लगाकर चोरी करता। उसकी मां उसके लिए दौत्य कर्म करती और चोरी में उसका सहयोग करती थी।
एक बार सहस्रमल्ल ने नगर के प्रतिष्ठित रत्न व्यापारी रत्नसार के घर रत्न चुराने के लिए रोशनदान के रास्ते से प्रवेश किया। जैसे ही रोशनदान से उसने प्रवेश करना चाहा, भीतर से सेठ के पुत्र जग गए और उन्होंने सहस्रमल्ल के पैर पकड़कर खींचे। सहस्रमल्ल सावधान हो गया। सेठ के पुत्र उसे भीतर खींच रहे थे और वह अपना पूरा बल लगाकर बाहर कूदना चाहता था। इससे उसके पैर और पीठ छिल गए। किसी न किसी तरह स्वयं को मुक्त कराके सहस्रमल्ल घर पहुंचा और मां को अपनी दयनीय दशा बताई। मां ने सहस्रमल्ल को सान्त्वना दी और कहा कि यह सब तो उसके कार्य का अंग है। इस कार्य में तो कभी पकड़े जाने पर अंग-भंग कराने को भी तैयार रहना पड़ता है, फांसी की सजा भी हो सकती है। पर तुम हिम्मत मत हारो। अपनी कुशलता और कार्यक्षमता को पैना बनाओ। ___मां से प्रोत्साहन पाकर सहस्रमल्ल दोगुणे उत्साह से चौर्य कर्म में लग गया। वह प्रतिदिन चोरी करता। नगर में त्राहि-त्राहि मच गई। राजा के पास नित्य चोरी की शिकायतें आतीं, पर राजपुरुष चोर को गिरफ्तार नहीं कर पाते। एक दिन धनसार नामक वस्त्र व्यवसायी और दिवाकीर्ति नामक नापित ने राजा से कहा कि वे चोर को पकड़ेंगे। सहस्रमल्ल की मां ने बाजार में घूमकर इस बात का भेद प्राप्त कर लिया कि धनसार
और दिवाकीर्ति ने सहस्रमल्ल को पकड़ने का बीडा उठाया है। उसने लौटकर सहस्रमल्ल को इसकी सचना दी। सहस्रमल्ल उन दोनों को सबक सिखाने के लिए घर से निकला। उसने धन कुबेर का वेश बनाया और नापित से हजामत करवाने पहुंचा। नापित ने धनी सेठ जानकर पूरे चित्त से उसकी मालिश-मसाज की और हजामत की। सहस्रमल्ल ने जेब में हाथ डाला और चेहरा बनाकर बोला, पैसे तो घर पर ही छूट गए हैं। - जैन चरित्र कोश --
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