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इसके अतिरिक्त एक बार उज्जयिनी नरेश चण्डप्रद्योत ने राजगृह को सदलबल घेर लिया। पर अभयकुमार ने अपने बुद्धिबल से उसे ऐसी मात दी कि वह रात में ही अपने देश भाग गया। उसने अपने बुद्धिबल से धारिणी, चेलना आदि विमाताओं के ऐसे दोहद पूर्ण कराए, जो असंभव से प्रतीत होते थे। ___ अभयकुमार भगवान महावीर का अनन्य उपासक था। एक बार भगवान का उपदेश सुनकर वह विरक्त हो गया। उस ने दीक्षा लेने का संकल्प कर लिया। परन्तु एतदर्थ महाराज श्रेणिक ने उसे आज्ञा नहीं दी। उसने पूछा, आखिर उसे आज्ञा कैसे मिलेगी। श्रेणिक ने कहा-जिस दिन मैं तुम्हें नाराज होकर अपनी आंखों से दूर चले जाने को कहूं, उस दिन तुम भगवान के पास दीक्षा ले सकते हो।
अभयकुमार ऐसे अवसर की तलाश और प्रतीक्षा में रहने लगा। आखिर उसे एक दिन महाराज श्रेणिक की नाराजगी का अवसर मिल ही गया। घटना इस प्रकार घटी-एक दिन महाराज श्रेणिक अपनी पटरानी चेलना के साथ भगवान महावीर के दर्शनों के लिए जा रहे थे। कड़ाके का जाड़ा पड़ रहा था। चेलना ने देखा, उस सर्द मौसम में एक मुनि ध्यानस्थ हैं। उस मुनि को देखकर रानी का हृदय उनके प्रति श्रद्धा से भर गया। वह हृदय की गहराई से उस मुनि से प्रभावित हुई।
रात्रि में महाराज श्रेणिक और चेलना निद्राधीन थे। रानी का एक हाथ कम्बल से बाहर रह गया। शीत की अधिकता से उसका हाथ सुन्न हो गया। उसकी आंखें खुली तो उसने अपना हाथ कम्बल में खींच लिया। साथ ही उसके मुख से निकला-धन्य है उसे ! कैसे सहता होगा इस विकराल शीत को! ऐसा कहकर रानी पुनः सो गई। परन्तु ये शब्द श्रेणिक के कानों में पड़ गए। वह संदेह का शिकार हो गया। उसे लगा कि उसकी रानी अपने किसी प्रेमी का स्मरण कर रही है।
संदेह विनाश का कारण होता ही है। राजा ने जैसे-तैसे सुबह की। वह कक्ष से बाहर निकला। अभय कुमार को सामने पाकर राजा ने आदेश दिया कि चेलना के महल में आग लगा दो और ध्यान रहे कि चेलना बचने न पाए। कहकर राजा भगवान के दर्शन-वन्दन को चला गया। पर अभयकुमार तो बहुत बुद्धिमान था। वह समझ गया कि उसके पिता अवश्य ही किसी संदेह के शिकार हो गए हैं। उसने ऐसा उपाय किया कि उसे पित्राज्ञा भी मिल जाए और विमाता का भी कोई अहित न हो। उसने महल के पास ही घास-फूस का ढेर लगवाकर उसमें आग लगवा दी।
श्रेणिक भगवान के पास पहुंचे। श्रेणिक के संदेह को दूर करने के लिए भगवान ने कहा-महाराज चेटक की सातों पुत्रियां परमशीलवती सन्नारियां हैं। भगवान की बात सुनकर श्रेणिक चौंक गए। 'कहीं अन्याय न हो जाए' इस आशंका के साथ वे तत्काल महलों की ओर चल दिए। मार्ग में ही उन्हें अभयकुमार मिल गया। श्रेणिक ने अभय से पूछा-तुमने मेरे आदेश को क्रियान्वित तो नहीं किया?
अभय बोला-राजाज्ञा और पित्राज्ञा के उल्लंघन का दुःसाहस मैं कैसे कर सकता हूं। सामने देखो, आग की लपटें उठ रही हैं!
श्रेणिक स्तंभित हो गए। उनके मुख से निकला-अभय! अन्याय कर दिया है तुमने! दूर चले जाओ मेरी आंखों से!
___ अभय को मनमांगी मुराद मिल गई। उन्हीं कदमों से वह भगवान के पास जाकर दीक्षित हो गया। पांच वर्षों तक संयम पालन करके उसने विविध तपस्याओं द्वारा कर्मों को हल्का किया और आयुष्य पूर्ण कर विजय विमान में पैदा हुआ। वहां से च्यव कर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर वह सिद्ध होगा।
-त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र ... जैन चरित्र कोश ...
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